सिमरनजीत सिंह/शाहजहांपुर : जिस नील का इस्तेमाल कपड़ों को चमकाने के लिए किया जाता है. सफेद को बेदाग बनाने के लिए किया जाता है. यही नील कभी भारतीय किसानों पर हुए जुल्म और अत्याचार की बड़ी वजह हुआ करता था .अंग्रेज जबरन भारतीय किसानों से नील की खेती करवाते थे, जो किसान इसकी खेती करने से इनकार करते थे उनको यातनाएं भी झेलनी पड़ती थी. शाहजहांपुर में भी नील की खेती एक बड़े क्षेत्रफल में की जाती थी.
इतिहासकार डॉ. विकास खुराना ने बताया कि नील की खेती की शुरुआत सन 1777 में बंगाल से हुई थी. दरअसल यूरोप में नील की काफी मांग थी. नील की खेती भारतीय किसानों के लिए फायदेमंद कम बल्कि नुकसानदायक ज्यादा साबित हुई. भारतीय किसानों को इसकी खेती करना पसंद नहीं था क्योंकि जिस खेत में तीन से चार साल तक नील की खेती की जाती. फिर वह जमीन बंजर हो जाती थी. जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता था.
इस तरह होता था किसानों का शोषणडॉ. विकास खुराना ने बताया कि यूरोप में नील की मांग बढ़ने के कारण अंग्रेजों के लिए यह फायदे का सौदा था. अंग्रेज यहां मनमाने ढंग से किसानों से खेती करवाते थे. किसानों से नील कौड़ियों के भाव खरीदते थे और महंगे दामों नील बेचते थे. बताया यह भी जाता है कि किसानों को नील की खेती करने के लिए लोन दिया जाता था और बाद में मनमाना ब्याज वसूला जाता था.
काल हार्पर ने किया था किसानों का जिक्रडॉ. विकास खुराना ने बताया कि शाहजहांपुर के खुदागंज इलाके में भी बड़े क्षेत्रफल में नील की खेती होती थी. सबसे पहले शाहजहांपुर के इतिहास पर काम करने वाले विशप काल हार्पर ने अपने लेख में लिखा है कि मई-जून के महीने में किसानों को नग्न अवस्था में कोड़े मारकर सजा दी जा रही थी. क्योंकि यह किसान नील की खेती करने से इंकार कर रहे थे.
बंगाल के किसानों ने किया पहला आंदोलनसाल 1859 में बंगाल के किसानों ने नील की खेती के खिलाफ अंग्रेजों के खिलाफ जंग छेड़ी थी, जिसे इतिहास में नील विद्रोह के नाम से जाना जाता है. इसके बावजूद नील की खेती में जुटे किसानों की परेशानी कम नहीं हुई. जबकि बिहार के चंपारण में1917 में आंदोलन शुरू हुआ था. चंपारण सत्याग्रह में महात्मा गांधी ने भी बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था. हालांकि बाद में 1930 में अमेरिका में नील का उत्पादन फैक्ट्री में होने लगा. इसके बाद खेतों में नील का उत्पादन बंद हो गया.
.Tags: Local18, Shahjahanpur News, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : March 8, 2024, 17:04 IST
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