Basti: भेष बदलकर राजा जालिम सिंह ने अंग्रेजों के छुड़ाए थे छक्के, साथ में थे पठान सैनिक

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Basti: भेष बदलकर राजा जालिम सिंह ने अंग्रेजों के छुड़ाए थे छक्के, साथ में थे पठान सैनिक



रिपोर्ट- कृष्ण गोपाल द्विवेदी
बस्ती: यूपी के बस्ती जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हर्रैया तहसील अन्तर्गत अमोड़ागांव प्राचीन समय का अमोड़ाराज्य जो कौशल देश का हिस्सा हुआ करता था. जिसकी सीमा वर्तमान में सरयू नदी अयोध्या जिले से मनवर नदी बस्ती जिले तक फैली थी. वैसे तो अमोढा राज्य में कई राजा हुए. लेकिन 1732 में जब राजा जालिम सिंह ने राज्य संभाला तो उन्होंने अमोड़ा में काफी विकास किया. क्षेत्र की सीमाएं बढ़ाए, सैन्य शक्ति व सैनिकों में भी बृद्धि की और व्यापार में भी काफी तेजी लाए. इसलिए उनके शासन काल को अमोड़ाराज्य के स्वर्णिम काल के रूप में भी गिना जाता है, क्योंकि उस समय में अमोड़ाराज्य ने जो समृद्धि हासिल की वैसा कभी नहीं हुआ था और न ही बाद में भी हो सका.
उन्होंने अपने राज्य को मुगलों और अंग्रेजोंसे बचाने के लिए कई युद्ध भी लड़े और विजयी भी हुए. राजा जालिम सिंह का महल अवशेष आज भी अमोढा में स्थित है और उन पर अंग्रेजों द्वारा तोपो से किए गए हमले का निशान भी विद्यमान है.
राजा जालिम सिंह को गौरिल्ला युद्ध और छापेमार युद्ध में महारथ हासिल थी. यही कारण रहा की उन्होंने कई बार मुगलों और अंग्रेजों को धूल चटाई और राजा जालिम सिंह को भेष बदलने में भी महारथ हासिल थी वो सामने से ही पलक झपकते ही भेष बदलकर गायब हो जाते थे.
गंगा जमुनी तहजीब की मिसालराजा जालिम सिंह मुगलों से लड़ रहे थे. उन्होंने अपने सेना में लगभग 4 हजार पठान सैनिकों को शामिल किया था.- क्षत्रिय सैनिक और पठान सैनिक मिलकर मुगलों और अंग्रेजों से मुकाबला किया करते थे, किले के अन्दर ही व्यायामशाला, सैन्य प्रशिक्षण, शस्त्रादि चलाने व घुड़सवारी हेतु आवश्यक प्रबन्ध किया गया था. जहां सभी सैनिकों को सैन्य शक्ति में निपूर्ण किया जाता था.
व्यापार कौशल में भी महारथी थे जालिम सिंहतब के समय में ही राजा जालिम सिंह अपने प्रजा को व्यावसायिक खेती के लिए प्रोत्साहित किया करते थे .खेती के अवकाश के दौरान बढ़ई, धोबी, मोची, लुहार, नाई, सुनार, कुम्हार, धुनिया, बुनकर, जुलाहा व वैद्य आदि सभी लोग कुटीर उद्योग में रमे रहते थे और इनके द्वारा बनाए गए उत्कृष्ट उत्पाद की बाजार में डिमांड भी अधिक थी. राजा जालिम सिंह खुद इन सब उत्पादों के क्रय के लिए बाजार उपलब्ध कराते थे. जिससे राज्य के सभी प्रजा धन धान्य से परिपूर्ण थे और सभी राजा को भगवान की तरह पूजते भी थे. अमोढा में स्थित किला व वहां से 3 किमी की दूरी पर स्थित पखेरवा का शानदार राजमहल जिसमें अमोढा किले से पखेरवा महल तक चार किमी की लम्बी सुरंग भी राजा जालिम सिंह ने अपने ही कार्यकाल में बनवाया था.
छल कपट से मिली थी शहादतअवध के नबाब शुजाउदौला और राजा जालिम सिंह के सम्बन्ध बाद में अच्छे हो गए और दोनों ने 1764 के बक्शर के युद्ध में अंग्रेजों से जमकर मुकाबला किया. लेकिन शुजाउदौला के मौत के बाद राजा जालिम सिंह अवध की सत्ता से अलग हो गए. इसके बाद शुजाउदौला का पुत्र आसिफुदौला अन्दर ही अन्दर राजा साहब खुन्नस खाए बैठा था. उसने कूटरचित तरीके से मेजर क्राऊफोर्ड के साथ मिलकर राजा जालिम सिंह को विश्वास में लेकर एक वार्ता फैजाबाद स्थित गुलाबबाड़ी में रखी और जैसे ही राजा जालिम सिंह वहां पहुंचे. उसने चुपके से उनपे हमला कर दिया. वीर पराकर्मी राजा ने घुटने नहीं टेके और अपने 11 विश्वास पात्र सिपाहियों के साथ मिलकर उन्होंने मुगलों के 500 सैनिकों का सिर धड़ से अलग कर दिया और वहां से भाग निकले.
आगे सरयू के तट पर अंग्रेज़ों ने भी घेरा बंदी कर रखी थी. तब भी जालिम सिंह ने घोड़ा नहीं रोका और सीधे सरयू नदी में झालांग लगा दिया. इस बीच अंग्रेजों ने भी उन पर सैकड़ों गोलियां चलाई. लेकिन पहले से घायल राजा जालिम सिंह न रुके और न ही झुके. सीधे नदी में घोड़े सहित समाहित हो गए. बाद में अंग्रेजों ने उनको सरयू नदी में ढूढने की काफ़ी प्रयास भी किया. लेकिन राजा जालिम सिंह नहीं मिले.
अंग्रेजो के सामने कभी घुटने नहीं टेकेइतिहासकार प्रो बलराम ने बताया की राजा जालिम जैसा पराकर्मी और वीर राजा देश में गिने चुने ही मिले. जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वत्र न्यौछावर कर दिया. लेकिन मुगलों और अंग्रेजों के सामने कभी घुटने नहीं टेके अन्तिम सांस तक लड़ते ही रहे और वीरगति को प्राप्त हुए. जहां आस पड़ोस के सभी राजा मुगलों व अंग्रेजों के सामने घुटने टेक चुके थे तो वही राजा जालिम सिंह अकेले सबका मुकाबला कर रहे थे.
अमोढा गांव के निवासी विजय सिंह ने बताया कि उनके गांव का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है और मुझे खुशी है की मैंने इतने वीर योद्धा के ज़मीन व गांव में जन्म लिया. सरकारें आती हैं जाति हैं वादा भी किया जाता है. लेकिन यहां की तरक्की के लिए कुछ नहीं किया गया. आज भी मेरा गांव अपनी बदहाली पर तरस खा रहा है.
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