रिपोर्ट : विशाल झा
गाज़ियाबाद : दीवारों पर खूबसूरत वॉल पेंटिंग के जरिए शिक्षा का संदेश देने वाले एक प्राथमिक विद्यालय में शिक्षा ही पटरी से उतरी हुई है. यहां अक्सर शिक्षक गायब रहते हैं, ऐसे में बच्चे एक दूसरे को ही पढ़ा कर अपना वक्त बिताते हैं. वहीं वार्षिक परीक्षा भी नजदीक है, ऐसे में अभिभावक बच्चों के भविष्य को लेकर चिंतित हैं.
प्राथमिक विद्यालय कैला जनरल द्वितीय में ढेरों समस्याएं हैं. इस स्कूल में पढ़ने वाले छात्र शुभान ने बताया कि मिड-डे मील का खाना अच्छा नहीं मिलता. कभी-कभी स्कूल में खाना नहीं बनता तो दूसरे विद्यालय पर ही निर्भर रहना पड़ता है. बताया कि पढ़ाने के लिए भी शिक्षक काफी देरी से आते हैं. कई बार तो पढ़ाते भी नहीं. वहीं अभिभावक इदरीश का आरोप है कि उनसे यहां के एक सहायक अध्यापक ने बच्चों के ड्रेस के नाम पर 600 रुपये लिए, लेकिन उस यूनिफार्म का आज तक कुछ पता नहीं.
जाओ, बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाओअभिभावक जायदा बताती हैं कि खंड शिक्षा अधिकारी कुसुम सिंह स्कूल की शिकयतों पर संज्ञान नहीं लेतीं. उल्टा कहती हैं कि अपने बच्चों को प्राइवेट स्कूल में पढ़ाओ. कुछ ऐसा ही वाकया इदरीश अली के साथ भी हो चुका है. उनके भी दो बच्चे शेख तन्वी और शेख तौहीर इसी स्कूल की कक्षा दो में पढ़ते हैं.
किचन के पास उतारा जाता है जूता-चप्पलस्कूल में साफ-सफाई की व्यवस्था भी काफी खराब है. यहां का शौचालय भी गंदा रहता है, जिसे साफ करने सफाई स्टाफ भी नियमित नहीं आता. स्कूल में जहां किचन है, वहीं पर जूते-चप्पल भी उतरे जाते हैं. अभिभावकों को कहना है कि इस तरह की गंदगी में बच्चों का रहना, उनकी सेहत से खिलवाड़ है. वहीं बच्चों का कहना है कि मिड-डे मील रेगुलर नहीं मिलता. जब मिलता है तो खाने से पहले सोचना पड़ता है. कई बार तबियत भी बिगड़ जाती है. जब स्कूल में मिड-डे मील नहीं पहुंचता तो दूसरे स्कूलों से मंगाकर दिया जाता है.
एकल अध्यापिका विद्यालय की शिक्षिका छुट्टी परवहीं बीएसए विनोद कुमार का कहना है कि प्राथमिक विद्यालय कैला जनरल द्वितीय एकल अध्यापिका विद्यालय है. जो अध्यापिका वहां कार्यरत हैं, वर्तमान में वह सीसीएल (चाइल्ड केयर लीव) पर हैं. उनकी जगह दूसरा शिक्षक लगाया गया था, लेकिन उनको हार्ट अटैक आ गया. इस वजह से वह भी मेडिकल लीव पर हैं. फिर भी एक शिक्षक की व्यवस्था वहां की गई है. मिड-डे-मील पर कहा कि स्कूल में लगातार खाना बनता है, लेकिन जो रसोइया वहां पर कार्यरत है, वह भी किसी घरेलु दिक्कत के कारण सिर्फ एक-दो दिन छुट्टी पर था. तब दूसरे विद्यालय से खाना मंगाकर बच्चों को दिया गया था. रही बात खाना खराब होने की, तो यह शिकायत गलत है. हमने जानकारी ली तो पता लगा कि खाना अब विद्यालय में ही बन रहा है और वह भी पौष्टिक है.
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