बागपत का रावण उर्फ बड़ागांव, रामलीला और रावण दहन नहीं होता यहां, वजह कर देगी हैरान

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बागपत का रावण उर्फ बड़ागांव, रामलीला और रावण दहन नहीं होता यहां, वजह कर देगी हैरान

बागपत. असत्‍य पर सत्‍य की विजय के पर्व विजय दशमी पर बागपत के गांव रावण उर्फ बड़ागांव में कोई धूमधाम नहीं होती है. यहां ना तो रामलीला होती है और ना ही रावण दहन. इसके पीछे हैरान कर देने वाला कारण है. दरअसल यहां के लोग रावण को अपना पूर्वज मानते हैं और उसकी पूजा-अर्चना करते हैं. बताया जाता है कि रावण का इस गांव से गहरा नाता रहा है. लोगों के मुताबिक यहाँ रावण ने काफी समय तप  हवन किया और उसके बाद वरदान में मिली माँ मनसा देवी की प्रतिमा की भी यही स्थापना की थी जो आज भी बड़ा गांव के मंशा देवी मन्दिर में विराजमान है. वहीं, अब ग्रामीण रावण के भव्य मंदिर के निर्माण की भी तैयारी में जुटे हैं.

दरअसल दिल्ली-यमुनोत्री हाईवे पर से 11 किमी दूर रावण उर्फ बड़ा गांव पुरातत्व और धार्मिक दृष्टिकोण से खासा महत्व रखता है. किवदंति, अवशेष, सैकड़ों साल पुरानी मूर्तियां और मंदिर इस गांव को सुर्खियों में बनाए रखते हैं. बताते हैं कि लंकाधिपति रावण इसी गांव में आया था. बड़ा गांव के एक ग्रामीण अमित त्यागी के अनुसार, रावण हिमालय से मंशा देवी की मूर्ति लेकर गुजर रहा था. रावण उर्फ बड़ा गांव के पास उसे लघुशंका हुई. मूर्ति रखकर वह लघुशंका चला गया.

रावण कुंड और मां मंशा देवी मंदिर आज भी गांव में हैमूर्ति स्थापना को लेकर विशेष शर्त थी कि पहली बार मूर्ति जहां रखी जाएगी वहीं स्थापित हो जाएगी. इस कारण मां की मूर्ति इस गांव में स्थापित हो गई. रावण ने मूर्ति स्थापित होने के बाद यहां एक कुंड खोदा और उसमें स्नान के बाद तप किया. इस कुंड का नाम रावण कुंड है. कहा जाता है कि रावण के समय का मां मंशा देवी का मंदिर अभी भी गांव में स्थापित है .इसी किवदंति के चलते इस गांव का नाम रावण पड़ गया ओर राजस्व अभिलेखों में भी इस गांव का नाम रावण उर्फ बड़ा गांव दर्ज है. ग्रामीणों के मुताबिक रावण ने यहां पर मंशा देवी मंदिर की स्थापना की. इसी आधार पर गांव को रावण नाम का दर्जा प्राप्त है. ग्रामीण रावण को गांव का संस्थापक मानकर उन्हें अपना पूर्वज मानते हैं.

रावण के पुतले का दहन होता है तो दुःखी होते हैं लोगवहीं, ग्रामीणों का कहना है कि गांव की स्थापना रावण ने की ओर हम उनके वंशज हैं. जब दशहरे के मौके पर जगह- जगह रावण के पुतले का दहन होता है तो हम लोग दुःखी होते हैं. यह गांव रावण का है और इसलिए पीढ़ियों से गांव में रामलीला का ना मंचन होता है और ना ही दशहरा मनाया जाता है. यहां तक कि आसपास के इलाकों में भी इस दिन कोई गांव का व्यक्ति रावण दहन नहीं देखता क्योंकि हमारे लिए ये दुःख की घड़ी है. ऐसा नहीं कि ये कोई नहीं परम्परा हो बल्कि सदियों से यही परम्परा चली आ रही है. चाहे उम्र के आख़री पड़ाव में आ चुका कोई बुजुर्ग हो या युवा हर कोई रावण को अपना पूर्वज मानते हुए गर्व महसूस करता है. गांव के लोग अपने गांव में जल्द ही रावण के भव्य मन्दिर का भी निर्माण करेंगे जिसके लिये समिति भी गठित कर ली गई है.
Tags: Baghpat news, Hindi news, Ravana Dahan, Ravana Dahan Story, Ravana effigy, UP newsFIRST PUBLISHED : October 12, 2024, 16:12 IST

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