आजमगढ़. विधानसभा चुनाव (Assembly Election) की तारीखों के ऐलान से ठीक पहले अमित शाह (Amit Shah) ने अखिलेश यादव (Akhilesh Yadav) के गढ़ में महाराजा सुहेलदेव के नाम पर विश्वविद्यालय की नींव रखकर राजभर मतों को साधने के लिए बड़ा दांव चला था. इसके बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव उनसे एक कदम आगे निकलते दिखे. उन्होंने बसपा नेता सुखदेव राजभर के निधन के बाद उनके पुत्र कमलाकांत राजभर को दीदारगंज से मैदान में उतार दिया. राजभर मतों को अपने पक्ष में करने में कौन कामयाब होगा यह तो समय बताएगा, लेकिन सियासी पैंतरेबाजी में ये चुनाव जरूर दिलचस्प होता दिख रहा है.
बताते चलें कि वर्ष 2007 तक यह सीट सरायमीर के नाम से जानी जाती थी और यहां सपा-बसपा के बीच सीधी टक्कर देखने को मिलती थी. वर्ष 1991 की राम लहर में बीजेपी यहां खाता खोलने में कामयाब हुई थी. वहीं वर्ष 2012 में सीट सामान्य कर इनका नाम बदलकर दीदारगंज कर दिया गया. सीट बदलाव के बाद पहली बार सपा ने आदिल शेख को उम्मीदवार बनाया था. आदिल शेख पार्टी की उम्मीदों पर खरा उतरे और बसपा के कद्दावर नेता पूर्व विधानसभा अध्यक्ष सुखदेव राजभर को हराकर सीट पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की झोली मेें डाल दी गई थी.
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अमित शाह की रणनीति पर सपा की पैनी नजरइसके बाद वर्ष 2017 के चुनाव में सुखदेव राजभर के हाथों आदिल शेख को हार का सामना करना पड़ा था. वर्ष 2022 के चुनाव में आदिल शेख को टिकट का प्रबल दावेदार माना जा रहा था, लेकिन पिछले दिनों सुखदेव राजभर ने अपने पुत्र कमलाकांत को सपा की सदस्यता दिला थी. उसी दौरान सपा और सुभासपा का गठबंधन हुआ तो अमित शाह ने राजभर मतोें को अपने पाले में रखने के लिए आजमगढ़ में विश्वविद्यालय का नाम महाराजा सुहेलदेव के नाम पर रखकर बड़ा दाव चल दिया. बीजेपी के इस दाव के काट में अब सपा ने दीदारगंज में राजभर मतों की अधिक संख्या को देखते हुए कमलाकांत राजभर को उम्मीदवार बना दिया है.
सुखदेव के नाम की सहानुभूति लेने की कोशिशसपा का मानना है कि इस सीट पर उसे सुखदेव राजभर के निधन से उपजी सहानुभूति का भी लाभ मिलेगा. इसका प्रभाव बगल की फूलपुर व मेंहनगर आदि सीटों पर भी पड़ेगा. इन दोनों विधानसभा में राजभरों की संख्या ज्यादा है. वहीं दूसरी तरफ सपा की मुश्किल भी बढ़ती दिखाई दे रही है.
आदिल का टिकट कटने से मुस्लिम नाराजजिलेे की दीदारगंज सीट ही ऐसी है जहां 24 प्रतिशत मुस्लिम हैं. आदिल शेख का टिकट कटने से मुस्लिम मतदाताओं में नाराजगी साफ दिख रही है. वहीं बसपा ने बाहुबली भूूपेंद्र सिंह मुन्ना को मैदान में उतारा है, जिनकी पकड़ क्षत्रिय के साथ ही मुस्लिम मतोें पर भी मानी जाती है. ऐसे में सपा के सामने यह मुश्किल बढ़ा सकती है. वहीं बीजेपी ने डा. कृष्ण मुरारी विश्वकर्मा को मैदान में उतारा है. कृष्ण मुरारी भी अति पिछड़ों को साधने की पूरी कोशिश करेंगे.
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