विशाल भटनागर/मेरठः गांवों में आज भी पुरानी परंपराएं जीवित हैं, जिनका इतिहास सैकड़ों वर्ष पुराना है. कुछ इसी तरह का नजारा मेरठ के बिजौली गांव में भी देखने को मिलता है. जहां धुलंडी अर्थात रंग वाली होली के दिन प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पुरानी परंपरा अनुसार तख्त यात्रा निकाल जाती है. इस यात्रा में युवा तख्त पर सवार होकर ग्रामीण क्षेत्रों में निकलते हैं, जिन्हें देवता का रूप माना जाता है.
बिजौली गांव के रहने वाले रजनीश त्यागी ने लोकल-18 से बताया कि 500 से अधिक वर्षों पुरानी यह परंपरा गांव में चलती आ रही है. वह बताते हैं कि राजा रणविजय सिंह ने ही बिजौली गांव को बसाया था. उनके शासनकाल में एक बार अकाल मृत्यु, भयंकर बीमारी और आपदाओं का दौर आया था. तब गांव में एक बार अपने शिष्य के साथ तपस्वी संत रूपी बाबा गंगापुरी आए थे. तब उन्होंने ही राजा रणविजय को यह तख्त परंपरा बताई थी. तबसे यह परंपरा चलती आ रही है. वह बताते हैं कि भगवान की इस तरीके से कृपा है कि गांव में कोई भी आपदा नहीं आती है.
परंपरा निभाने के लिए युवाओं में रहती है जिज्ञासाइस परंपरा को निभाने के प्रति युवाओं में भी जिज्ञासा देखने को मिलती है. नुकीले औजारों के माध्यम से उनके शरीर के विभिन्न हिस्सों को बेधा जाता है. इसमें लोहे के कुछ वस्तुओं को आर-पार कर दिया जाता है. राजेश त्यागी आगे बताते हैं कि दिव्य शक्ति की कृपा से युवाओं को बिल्कुल भी नुकसान नहीं होता है. होली के दिन रंग खेलने के बाद गांव में तख्त यात्रा निकालना शुरू हो जाती है, जो बाबा की समाधि तक जाती है.
सालों से जारी है परंपरा
बता दें कि देवी- देवताओं की वेशभूषा में युवा वस्त्र को धारण कर तख्त पर खड़े हो जाते हैं. इसके बाद तख्त को गांव के ही युवा अपने कंधे पर लेकर पूरे गांव की यात्रा पर निकल जाते हैं. इस वर्ष भी यात्रा को लेकर ग्रामीणों में उत्साह है. नुकीली औजारों को तैयार किया जा रहा है, जिसके माध्यम से इस प्राचीन परंपरा को हर्षोल्लास के साथ निभाया जाए.
.Tags: Local18, Meerut newsFIRST PUBLISHED : March 21, 2024, 10:47 IST
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