अलीगढ़. तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत में यकीन कर, अगर कहीं है स्वर्ग तो उतार ला जमीन पर. गीतकार शैलेंद्र की लिखी ये पंक्तियां बिल्कुल सटीक बैठती हैं अलीगढ़ के नरेश पर. नरेश ने विषम परिस्थितियों से टकराकर खुद के लिए रास्ता बनाया है.
दरअसल, अलीगढ़ के अतरौली के लोधा नगला में रहने वाले नरेश जीवटता की मिसाल हैं. वे एक पैर से पूरी तरह दिव्यांग हैं, लेकिन अपने एक पांव से ही साइकिल पर फर्राटा भरते हैं. उनकी साइकिल की रफ्तार और संतुलन साधने का कौशल देखने वालों को चकित कर देता है. रामघाट रोड पर उन्हें साइकिल चलाते देखा जा सकता है. वे तालानगरी की एक फैक्ट्री में काम करते हैं. इसके लिए नरेश रोजाना 40 किलोमीटर साइकल चलाकर आना-जाना करते हैं. यह सही है कि नरेश ने संघर्ष का रास्ता चुना है, पर समाज और सरकार का यह नैतिक दायित्व है कि उनके इस संघर्ष को समुचित साधन दिलाकर आसान बनाया जाए.
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नरेश एक पांव होने के बावजूद आत्मनिर्भर हैं. कहीं भी जाना होता है, तो वह साइकिल पर चढ़कर हवा से बातें करते हैं. नरेश एक फैक्ट्री में मजदूरी करते हैं और रोज अतरौली से 20 किलोमीटर दूर का सफर साइकिल से तय करते हैं. साइकिल के पैडल मारने के लिए डंडे का सहारा लेते हैं. इन्हें रोड पर साइकिल चलाते देख लोगों दांतों तले अंगुली दबा लेते हैं. नरेश बचपन से दिव्यांग नहीं हैं. ट्रेन दुर्घटना में उन्हें अपना एक पांव गंवाना पड़ा. लेकिन जिंदगी में उन्होंने कभी हार नहीं मानी. निश्चित ही नरेश से लोगों को प्रेरणा मिलती है.
एक पैर से दिव्यांग होने के बावजूद नरेश परिवार पर बोझ नहीं हैं. वे बताते हैं कि ट्रेन हादसे में रेलवे से जो आर्थिक मदद मिली थी वह इलाज में खर्च हो गई. नरेश अब मेहनत मजदूरी करके अपनी जीविका चला रहे हैं. उनकी एक हसरत है कि कोई सरकारी नौकरी मिल जाए तो उनका भला हो जाएगा.पढ़ें Hindi News ऑनलाइन और देखें Live TV News18 हिंदी की वेबसाइट पर. जानिए देश-विदेश और अपने प्रदेश, बॉलीवुड, खेल जगत, बिज़नेस से जुड़ी News in Hindi.
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