अखिलेश का किला, BJP चली भेदने… संघमित्रा मौर्या बनेंगी भाजपा का खेवनहार, भाजपा का अचूक प्लान

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अखिलेश का किला, BJP चली भेदने... संघमित्रा मौर्या बनेंगी भाजपा का खेवनहार, भाजपा का अचूक प्लान

लखनऊः उत्तर प्रदेश की सियासत किसी चक्रव्यूह से कम नहीं है. इसको भेद्दना बहुत ही मुश्किल है. शायद यही वजह है कि सूबे में किसी भी चुनाव से पहले राजनीतिक दलों की तैयारी महीनों पहले शुरू हो जाती है. इसी कड़ी में उत्तर प्रदेश के 10 विधानसभा सीटों पर उपचुनाव होने को हैं, ऐसे में हर कोई जबरदस्त प्रयास कर रहा है. खासतौर पर भारतीय जनता पार्टी. क्योंकि लोकसभा चुनाव के नतीजों ने बीजेपी को काफी निराश किया और बीजेपी इस बार किसी तरह की चूक नहीं करना चाहती है. यही वजह है कि सपा मुखिया अखिलेश यादव द्वारा खाली की गई करहल विधानसभा सीट पर बीजेपी प्लानिंग कर रही है.

करहल के लिए बीजेपी का प्लानचुनावी रणनीति, उम्मीद और संभावनाओं के बीच सपा के अभेद्य दुर्ग करहल को भेदने के लिए बीजेपी तैयारियों में जुटी है. सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस्तीफे के चलते यहां उपचुनाव होना है. दो दशक से यह सीट सपा का अभेद्य गढ़ है. इस दौरान लड़ाई तो दूर कभी मजबूत चुनौती भी सपा को नहीं मिल पाई है. लेकिन इस बार बीजेपी इस किले में ऐसी घेराबंदी कर रही है, जिससे सपा की नाक का सवाल बनी करहल के दुर्ग में सभी सपाई दिग्गजों को घेरा जा सके. इसके लिए बीजेपी जातीय लिहाज से मजबूत प्रत्याशी सपा के सामने उतारने की तैयारी में है. इसके लिए बीजेपी ने प्रत्याशियों के नामों का पैनल भी तैयार कर लिया है.

संघमित्रा मौर्या पर बीजेपी का भरोसा?बीजेपी करहल से दिग्गज को चुनावी मैदान में उतारने की रणनीति में जुटी है. बीजेपी करहल से स्वामी प्रसाद की बेटी संघमित्रा मौर्य को प्रत्याशी बना सकती है. इसके अलावा मुलायम सिंह के सामने चुनाव लडने वाले पुराने भाजपाई प्रेम सिंह शाक्य को चुनावी मैदान में उतार सकती है. हालांकि करहल से एसपी सिंह बघेल की बेटी सलोनी बघेल के नाम को लेकर भी चर्चा है. शिवम चौहान, अशोक चौहान और योगेश प्रताप बघेल के नाम की भी चर्चा है.

सपा के 45 फीसदी कोर वोटरबीजेपी ने करहल जीतने के लिए मैनपुरी को सियासी लिहाज से मजबूत करने के लिए प्रतिनिधत्व भी दिया, जहां जयवीर सिंह को बड़ा मंत्रालय देकर कैबिनेट मंत्री बनाया और मुलायम सिंह यादव के खिलाफ चुनाव लड़ने वाले प्रेम सिंह शाक्य को पैक्सफेड का अध्यक्ष बनाया. लेकिन यह सीट अब भी बीजेपी के लिए चुनौती बनी हुई है. करहल में अगर जातीय समीकरण के लिहाज से अगर देखा जाए तो कुल वोटरों में लगभग 40% यादव हैं और लगभग 5% मुस्लिम. सपा के इस लगभग 45% कोर वोटरों के साथ मजबूत स्थिति में है.

सपा को कभी नहीं मिली कड़ी टक्करवहीं बीजेपी का दांव है कि वह वोटर जो बीजेपी के साथ आ सकता है, उसमें अगर देखा जाए तो इस वोटर पर बीजेपी की नजर है. करहल में बघेल, शाक्य व लोधी भी 80 हजार हजार से अधिक हैं. जबकि ब्राह्मण-क्षत्रिय वोटरों की संख्या भी 50 हजार के करीब हैं. इसके अलावा लगभग 50 हजार के करीब एससी वोटर हैं. 2022 में भाजपा को यहां 80 हजार वोट मिले थे, लेकिन जीत के लिए सपा के कोर वोट में सेंध लगाए बिना बात नहीं बनेगी. बसपा 2012 में यहां दूसरे नंबर पर रही थी. इसके बाद के दो चुनावों में उसकी जमानत जब्त हो गई थी.

जब मुलायम के दोस्त की ‘दुश्मनी’ में छिना था करहल का किलाक्षेत्र की राजनीति में 80 के दशक में छा रहे मुलायम सिंह यादव के सबसे नजदीकी दोस्त में दर्शन सिंह यादव की गिनती होती थी. सियासी विस्तार के साथ ही इस दोस्ती में महत्वाकांक्षा के बीज पनपने लगे. 1989 में जिला परिषद के चुनाव में दरार इतनी बढ़ी कि दर्शन ने कांग्रेस का दामन थाम लिया व मुलायम के खिलाफ खड़े हो गए. दर्शन ने जसवंत नगर से मुलायम के खिलाफ नजदीकी मुकाबला भी लड़ा लेकिन जीत नसीब नहीं हुई. लेकिन फिर दर्शन के निधन के बाद दर्शन के भाई सोबरन ने 2002 के चुनाव में करहल कमल खिला दिया. सपा के गढ़ में भाजपा की यह जीत इतनी करीबी थी कि जीत का अंतर महज 925 वोटों का था. इसके बाद से बीजेपी करहल में जीत की बाट जोह रही है.
Tags: Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : October 9, 2024, 12:59 IST

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