Maharishi chandrama Rishi. आजमगढ़ को ऋषियों की धरती माना जाता है. ये तीन महान ऋषियों महर्षि दुर्वासा, ऋषि महर्षि दत्तात्रेय और महर्षि चंद्रमा ऋषि की तपोस्थली है. ये जगह ऐतिहासिक और पौराणिक रूप से बेहद महत्त्वपूर्ण है. चंद्रमा ऋषि का आश्रम तमसा नदी और सिलनी नदी के संगम पर स्थित है. ये आश्रम शहर मुख्यालय से मात्र 10 किलोमीटर की दूरी पर है. महर्षि चंद्रमा माता अनुसूया और अत्रि मुनि के पुत्र थे. हिंदू धर्म में किसी भी पूजा पाठ में नवग्रह की पूजा की जाती है और चंद्रमा उन नवग्रह में से एक ग्रह है. इसे सोम, रजनीपति, इंदु और क्षुपक नाम से भी जाना जाता है. महर्षि चंद्रमा ऋषि का सोमनाथ ज्योतिर्लिंग से खास कनेक्शन है.माता अनुसूया की परीक्षा
चंद्रमा ऋषि आश्रम के महंत बम बम गिरी बताते हैं कि माता अनुसूया और अत्रि ऋषि को ब्रह्मा, विष्णु, महेश को पुत्र के रूप में प्राप्त करने की अभिलाषा हुई. उन्हें प्राप्त करने के लिए माता तपस्या करने लगीं. तपस्या के दौरान देवी पार्वती, सरस्वती और लक्ष्मी ने माता अनसूया की परीक्षा लेने का मन बनाया और अपने-अपने पतियों को माता अनुसूया से भिक्षा लेने के लिए भेज दिया. उन्होंने माता अनुसूया से नग्न अवस्था में भिक्षा देने की मांग की, अपने अंतर ध्यान से सब कुछ समझते हुए माता अनुसूया ने तीनों देवों को बाल रूप में परिवर्तित करते हुए स्तनपान कराया. इससे सभी देवी देवता प्रसन्न हो गए. तपस्या पूरी होने के बाद माता अनुसूया और अत्रि ऋषि को महर्षि दुर्वासा, महर्षि दत्तात्रेय और चंद्रमा ऋषि नामक तीन पुत्र प्राप्त हुए.
समय का निर्धारणमहंत बम बम गिरी बताते हैं कि चंद्रदेव का विवाह दक्ष प्रजापति और वीरणी की 60 में से 27 कन्याओं के साथ हुआ. इन कन्याओं में चंद्रमा ऋषि रोहिणी से सर्वाधिक प्रेम करते थे. जिन 27 कन्याओं से चंद्रमा ऋषि का विवाह हुआ उन्हें 27 नक्षत्र भी कहा गया है. चंद्र जिस नक्षत्र में होते हैं, वो नक्षत्र ही उनकी पत्नी मानी जाती है. पूरी दुनिया में 27 नक्षत्रों के मुताबित ही समय का निर्धारण होता है. चंद्रमा ऋषि के पत्नियों के नाम इस प्रकार हैं- तारा, अश्विनी, भरणी, रोहिणी, आर्द्रा, मूला, कृत्तिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, आश्लेषा, मघा, पूर्वफाल्गुनी, उत्तरफाल्गुनी, हस्ता, चित्रा, स्वाती, विशाखा, अनुराधा, ज्येष्ठा, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवणा, धनिष्ठा, पूर्वभाद्रपदा, उत्तरभाद्रपदा, रेवती और पुष्या.
क्षय रोग से ग्रसितपौराणिक मान्यताओं के अनुसार, चंद्रमा ऋषि अपनी 27 पत्नियों में से रोहिणी को सर्वाधिक प्रेम करते थे. इससे उनकी बाकी 26 पत्नियां दु:खी रहने लगीं और अपने पिता दक्ष प्रजापति से चंद्रमा ऋषि के इस बर्ताव की शिकायत की. बेटियों के दु:ख से क्रोधित होकर दक्ष प्रजापति ने चंद्रमा को श्राप दे डाला. उस श्राप के कारण चंद्रमा ऋषि क्षय रोग से ग्रसित हो गए. इस रोग से ग्रसित होने के कारण चंद्रमा का तेज कम होने लगा.
भोलेनाथ ने किया मुक्तचंद्रमा ऋषि अपने क्षय रोग से मुक्ति पाने के लिए भगवान विष्णु के कहने पर प्रभास तीर्थ में जाकर 108 बार महामृत्युंजय मंत्र का जाप किया. इससे भगवान शिव प्रसन्न हो गए और चंद्रमा ऋषि को क्षय रोग से मुक्ति दिलाई. उसी स्थान को आज भगवान शंकर का सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है.