शहरीकरण और आधुनिक लाइफस्टाइल ने बच्चों की सेहत के सामने एक नया खतरा खड़ा कर दिया है. यूएस की प्रतिष्ठित येल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने हाल ही में एक चौंकाने वाली स्टडी में दावा किया है कि छोटे बच्चों को यदि जीवन की शुरुआती दिनों में प्रदूषित हवा और रात की आर्टिफिशियल लाइट के संपर्क में लाया जाए, तो उन्हें थायरॉइड कैंसर होने का खतरा 25% तक बढ़ सकता है. यह अध्ययन ‘एनवायर्नमेंटल हेल्थ पर्सपेक्टिव्स’ नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
रिसर्च के अनुसार, हवा में मौजूद बारीक कण (PM2.5) और बाहर की आर्टिफिशियल लाइट एट नाइट (O-ALAN) खासकर पेरिनेटल पीरियड में शरीर पर गंभीर असर डाल सकती हैं. यह वह समय होता है जब शिशु गर्भ में होता है या जन्म के पहले एक साल में होता है. ऐसे समय में प्रदूषण और रोशनी का संपर्क शरीर में सेलुलर लेवल कोशिकीय स्तर पर बदलाव ला सकता है, जिससे आगे चलकर कैंसर जैसी बीमारियों का खतरा बढ़ सकता है.
एक्सपर्ट का क्या कहना?येल स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ की पर्यावरण स्वास्थ्य विशेषज्ञ डॉ. निकोल डेजील बताती हैं kf यह बेहद चिंता की बात है क्योंकि प्रदूषण और आर्टिफिशियल लाइट आज के शहरी जीवन का आम हिस्सा बन चुके हैं. बच्चों में तेजी से बढ़ते थायरॉइड कैंसर के पीछे ये फैक्टर अहम भूमिका निभा सकते हैं.
736 बच्चों पर हुआ अध्ययनशोधकर्ताओं ने कैलिफोर्निया के 736 बच्चों और किशोरों का डेटा अध्ययन में शामिल किया, जिन्हें 20 साल की उम्र से पहले पैपिलरी थायरॉइड कैंसर हुआ था. इनकी तुलना 36,800 ऐसे बच्चों से की गई जो स्वस्थ थे. सैटेलाइट और जियोग्राफिकल डेटा की मदद से जन्म के समय उनके घर के आसपास के एरिया की एयर क्वालिटी और रोशनी के लेवल का विश्लेषण किया गया. नतीजों में सामने आया कि PM2.5 के लेवल में 10 माइक्रोग्राम/घन मीटर की वृद्धि से कैंसर का खतरा 7% तक बढ़ जाता है.
वहीं, जिन बच्चों का जन्म अधिक रात की रोशनी वाले इलाकों में हुआ, उनमें थायरॉइड कैंसर की संभावना 23–25% अधिक थी. यह प्रभाव खासतौर पर किशोरों (15–19 वर्ष) और हिस्पैनिक समुदाय के बच्चों में ज्यादा देखा गया. हालांकि, शोधकर्ताओं ने यह भी कहा कि इन निष्कर्षों की पुष्टि के लिए और ज्यादा गहन अध्ययन की आवश्यकता है. लेकिन यह स्टडी चेतावनी जरूर देती है कि हवा और रोशनी का यह ‘किलर कॉम्बो’ बच्चों के लिए गंभीर खतरा बन सकता है.