योगेंद्र प्रताप सिंह: दिव्यांगों के मसीहा, लकी फाउंडेशन के संस्थापक

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Last Updated:April 18, 2025, 13:45 ISTयोगेंद्र प्रताप सिंह ने अपने दिव्यांग बेटे की प्रेरणा से लकी फाउंडेशन की स्थापना की और दिव्यांगों की सेवा के लिए सरकारी नौकरी छोड़ दी. कैंसर से जूझते हुए भी वे दिव्यांगों की सेवा में लगे रहे.X

inspiring storyहाइलाइट्सयोगेंद्र ने दिव्यांग बेटे की प्रेरणा से लकी फाउंडेशन की स्थापना की.दिव्यांगों की सेवा के लिए योगेंद्र ने डॉक्टरी छोड़ दी.कैंसर से जूझते हुए भी योगेंद्र दिव्यांगों की सेवा में लगे रहे.कन्नौज: कन्नौज में एक डॉक्टर की ऐसी कहानी सामने आई है, जिसे सुनकर हर कोई भावुक हो रहा है. मेडिकल से जुड़े पेशे की पत्नी ने बेटे को जन्म दिया, लेकिन बेटा जन्म से ही दिव्यांग था. इसके बाद मेडिकल से जुड़े पेशे के बेटे की दिव्यांगता को समझते हुए एक ऐसा काम किया जिसकी हर तरफ तारीफ हो रही है. डॉक्टर ने लोन लेकर एक जगह खरीदी और वहां दिव्यांगों को हर सुविधा देने की ठानी. जहां भी कोई दिव्यांग दिखता या उसकी जानकारी मिलती, वह उसे अपने घर लाकर एक पिता की तरह उसकी सेवा करने लगते. एक समय ऐसा आया जब इन दिव्यांगों की सेवा के लिए उन्होंने अपनी नौकरी छोड़ दी. उन्होंने कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से भी लड़ाई लड़ी और उसे हरा दिया. आज 58 साल की उम्र में भी  योगेंद्र प्रताप सिंह पूरी निष्ठा से इन दिव्यांगों की सेवा कर रहे हैं.

क्या है नाम कहां बना दिव्यांगों का संस्थानयोगेंद्र प्रताप सिंह हरदोई जिले के रहने वाले हैं. उनके पिता हरदोई में प्राइमरी टीचर थे. डॉ सिंह ने लखनऊ से एमडी मेडिसिन की डिग्री हासिल की और केजीएयू में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर काम किया. 2005 में उन्होंने अपने दिव्यांग बेटे के नाम से लकी फाउंडेशन की शुरुआत की, जहां वे किसी भी दिव्यांग को अपने साथ ले आते थे. अपने निजी खर्चे पर वे यह सब कर रहे थे. बाद में, कुछ लोगों ने उनकी मदद की, जिससे काम धीरे-धीरे आगे बढ़ने लगा.

बेटे की समस्या बनी प्रेरणाकरीब 26 साल पहले योगेंद्र प्रताप की पत्नी ने एक बच्चे को जन्म दिया, जो जन्मजात बीमारी से ग्रसित था और दिव्यांग था. मेडिकल के पेशे से जुड़े उस बच्चे की तकलीफ को अपना समझा और एक दिन राह में उन्हें कुछ दिव्यांग बच्चों के साथ गलत व्यवहार होते दिखा. इसके बाद उन्होंने दिव्यांगों को ही अपना परिवार बनाने का निर्णय लिया और अपने दिव्यांग बेटे के नाम पर इस संस्था की शुरुआत की.

डॉक्टरी छोड़ी, कैंसर की जीती जंगमेडिकल के पेशे से जुड़े दिव्यांग बच्चों की सेवा में इतने समर्पित हो गए कि उन्होंने अपना पूरा समय इन्हें देना शुरू कर दिया और इसके लिए उन्होंने 2009 में सरकारी भी छोड़ दी. उन्हें कैंसर की गंभीर बीमारी हो गई, फिर भी वह इन दिव्यांगों की सेवा करते रहे. आज उनका मानना है कि इसी सेवा भाव से उनका कैंसर अपने आप ठीक हो गया. 95% कैंसर स्टेज पर पहुंचने के बाद आज मैं पूरी तरह से स्वस्थ हूं.

क्या बोले डॉक्टरयोगेंद्र प्रताप सिंह बताते हैं कि दिव्यांगों के प्रति उनके मन में हमेशा से ही करुणा रही है. उनका बेटा दिव्यांग है, लेकिन उन्होंने उसे कभी भी इसका एहसास नहीं होने दिया. एक बार उन्होंने देखा कि एक दिव्यांग के साथ अत्याचार हो रहा है, तब उन्हें महसूस हुआ कि भले ही उनके बेटे को कोई दिक्कत नहीं है, लेकिन समाज में दिव्यांगों को अलग-थलग कर दिया जाता है. इसी सोच के साथ उन्होंने दिव्यांगों के लिए एक संस्थान शुरू किया. शुरुआत में उन्होंने किराए की जमीन पर यह काम शुरू किया, लेकिन बाद में लोन लेकर एक जगह खरीदी और वहां इस फाउंडेशन में दिव्यांग लोगों को लाना शुरू किया. 2005 से 2017 तक उन्होंने निजी और लोगों के सहयोग से इस संस्थान को चलाया. 2017 के बाद उन्हें सरकारी सहायता मिली, लेकिन वह भी बहुत कम है. एक बच्चे की सुबह से रात की सभी जरूरतों के लिए 47 रुपए की सहायता पर्याप्त नहीं होती. ऐसे में आज भी डॉ. सिंह अपने निजी स्रोतों और लोगों के सहयोग से इन दिव्यांग लोगों की सेवा कर रहे हैं. वह चाहते हैं कि अगर सरकार की थोड़ी और मदद मिल जाए तो वे और भी बेहतर तरीके से इन दिव्यांगों की देखभाल कर सकते हैं.
Location :Kannauj,Uttar PradeshFirst Published :April 18, 2025, 13:45 ISThomeuttar-pradeshपहले खुद लड़े कैंसर से, बेटे की तकलीफ भी देखी, फिर छोड़ी सरकारी नौकरी

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