Gestational Diabetes Mellitu early screening it is a crucial step for maternal and foetal health | प्रेग्नेंसी में शुगर कंट्रोल नहीं किया तो हो सकती है बड़ी मुसीबत! जानें क्यों जरूरी है शुरुआती जांच

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Gestational Diabetes Mellitu early screening it is a crucial step for maternal and foetal health | प्रेग्नेंसी में शुगर कंट्रोल नहीं किया तो हो सकती है बड़ी मुसीबत! जानें क्यों जरूरी है शुरुआती जांच



प्रेग्नेंसी के दौरान मां और बच्चे दोनों की सेहत बेहद नाजुक होती है. ऐसे में अगर ब्लड शुगर लेवल अनियंत्रित हो जाए, तो यह भविष्य में बड़ी समस्या बन सकता है. हाल के वर्षों में जेस्टेशनल डायबिटीज यानी गर्भावधि मधुमेह के मामले तेजी से बढ़े हैं, खासकर भारत जैसे देशों में जहां लाइफस्टाइल और खानपान तेजी से बदल रहे हैं. चौंकाने वाली बात यह है कि कई महिलाएं इस स्थिति से अनजान रहती हैं और जब तक इसकी पहचान होती है, तब तक यह मां और बच्चे दोनों के लिए खतरे का कारण बन सकती है.
जेस्टेशनल डायबिटीज (GDM) एक ऐसी स्थिति है जिसमें प्रेग्नेंसी के दौरान महिला के ब्लड ग्लूकोज लेवल नॉर्मल से अधिक हो जाते हैं. यदि समय रहते इसका पता न चले और इलाज न हो, तो यह हाई ब्लड प्रेशर, प्री-एक्लेम्पसिया और सी-सेक्शन जैसी दिक्कतों को जन्म दे सकता है. वहीं शिशु को अधिक वजन (मैक्रोसोमिया), समय से पहले जन्म, जन्म के समय कम ब्लड शुगर और भविष्य में टाइप 2 डायबिटीज जैसी समस्याएं हो सकती हैं.
डायकेयर डायबिटीज स्पेशलिटीज क्लिनिक (रांची) में डायबिटोलॉजिस्ट डॉ. नूपुर वाणी कहती हैं कि अगर जेस्टेशनल डायबिटीज की पहचान प्रेग्नेंसी की शुरुआत में ही हो जाए, तो लाइफस्टाइल में बदलाव, पोषण संबंधी सलाह और जरूरत पड़ने पर दवाइयों के जरिए से ब्लड शुगर को कंट्रोल में रखना संभव होता है. इससे मां और बच्चे दोनों की सेहत को सुरक्षित किया जा सकता है.
जेस्टेशनल डायबिटीज कब विकसित होती है?विशेषज्ञों के अनुसार जेस्टेशनल डायबिटीज आमतौर पर प्रेग्नेंसी के 24वें से 28वें हफ्ते के बीच विकसित होती है, लेकिन अगर महिला मोटापे, डायबिटीज के पारिवारिक इतिहास या पिछले गर्भ में जेस्टेशनल डायबिटीज की शिकार रही हो, तो पहले तिमाही में ही जांच करवाना बेहद जरूरी है. इसके लिए ग्लूकोज चैलेंज टेस्ट (GCT) और ग्लूकोज टॉलरेंस टेस्ट (GTT) जैसे आसान टेस्ट होते हैं, जो डायबिटीज की शुरुआती पहचान में मदद करते हैं.
क्या करें?गर्भवती महिलाओं को बैलेंस डाइट, नियमित व्यायाम जैसे प्रेग्नेंसी योगा या हल्की वॉक और डॉक्टर की सलाह से शुगर लेवल को कंट्रोल रखना चाहिए. समय पर स्क्रीनिंग और सतर्कता न सिर्फ मां को टाइप 2 डायबिटीज से बचा सकती है, बल्कि बच्चे को भी भविष्य में गंभीर बीमारियों से सुरक्षित रख सकती है.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.



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