Holi Fagua Geet: ‘जोगीरा सारा रा रा…’, पूर्वांचल में फगुआ गीत बिन अधूरा है त्योहार, जानें क्यों शिव-पार्वती की होली सबसे अनोखी

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Last Updated:March 13, 2025, 13:32 ISTHoli Fagua Geet: होली आते ही ‘जोगीरा सारा रा रा…’ गीत हर कहीं सुनने के लिए मिलता है. इन गीतों के बिना पूर्वांचल की होली अधूरी मानी जाती है.X

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पूर्वांचल की होली: फगुआ गीतों के बिना अधूरी, जानिए क्यों यह परंपरा है अनोखी!हाइलाइट्सपूर्वांचल में होली फगुआ गीतों के बिना अधूरी मानी जाती है.’जोगीरा सारा रा रा…’ गीत से पूर्वांचल में होली की मस्ती शुरू होती है.काशी में शिव की होली मृत्यु को जीवन का उत्सव बताती है.Holi Fagua Geet: होली का रंग जब तक फगुआ गीतों से न सजे, तब तक पूर्वांचल में होली पूरी नहीं मानी जाती. गांव की गलियों, चौपालों और घरों में ढोलक की थाप पर ‘जोगीरा सारा रा रा..’ से गूंजने लगती है. माहौल पूरी तरह रंगीन हो जाता है. फगुआ सिर्फ गीत नहीं बल्कि पूर्वांचल की संस्कृति का वो हिस्सा हैं जो सदियों से जिंदा है.

‘जोगीरा सारा रा रा…’ से शुरू हुई फगुआ मस्तीपूर्वांचल और बिहार में होली का मतलब ही ‘जोगीरा’ होता है. यहां एक तरह का व्यंग्यात्मक गीत होता है, जिसमें मजाक, हंसी-मजाक और समाज की हल्की-फुल्की चुटकियां ली जाती हैं. ढोलक, मंजीरा और झांझ के साथ जब ‘जोगीरा’ गाया जाता है, तो माहौल में एक अलग ही उर्जा आ जाती है. हर गली-मोहल्ले में टोली बनती है और घर-घर जाकर लोग फगुआ गाते हैं.

‘खेले मसाने में होली…’ शिव की अनोखी होलीकाशी और लहुरी काशी में होली सिर्फ घरों और चौपालों तक सीमित नहीं रहती, बल्कि श्मशान तक पहुंच जाती है. ‘खेले मसाने में होरी, दिगंबर खेले मसाने में होरी’ गीत सुनते ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं. शिव की यह होली अनूठी इसलिए भी है क्योंकि यह बताती है कि मृत्यु भी जीवन का उत्सव है. भूत-प्रेत और साधुओं की टोली जब मसान में होली खेलती है, तो काशी नगरी शिवमय हो जाती है.

‘फगुआ कोई मजाक नहीं, एक विधा है’गाजीपुर के लोक गायक विद्या निवास पांडेय का कहना है कि फगुआ गाना एक कला है. यह सिर्फ होली का मजा बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि इसमें भारतीय संस्कृति की गहराई छुपी है. उन्होंने बताया कि सरस्वती पूजन के दिन से फगुआ गाने की परंपरा शुरू होती है और यह होली के आठ दिन बाद तक चलता है.

फगुआ के कई रूप होते हैं – ‘चौतार’, ‘बारहमासा’ और ‘चहका गीत’.  विद्या जी बताती हैं कि इन गीतों को मौसम और समय के हिसाब से गाया जाता है और गलत समय पर गाने से ‘पाप’ लग सकता है. भोजपुरी और शास्त्रीय संगीत की जड़ें भी इसी विधा से जुड़ी हैं.

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लोक गीतों से खास बनती है होली आज के डिजिटल दौर में भले ही DJ और फिल्मी गानों का क्रेज बढ़ा हो, लेकिन पूर्वांचल की असली होली लोकगीतों में ही जिंदा है. राम-सीता, शिव-पार्वती और कृष्ण-राधा के फगुआ गीत होली को पौराणिक और सांस्कृतिक बनाते हैं.
First Published :March 13, 2025, 13:30 ISThomeuttar-pradesh’जोगीरा सारा रा रा…’, पूर्वांचल में फगुआ गीत बिन अधूरा है त्योहार

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