भारत में हर साल कैंसर लाखों जिंदगियों को प्रभावित करता है, जिससे यह देश की सबसे गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं में से एक बन चुका है. भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (ICMR) के अनुसार, 2020 में देश में करीब 13.9 लाख कैंसर के मामले दर्ज किए गए थे और यह संख्या 2025 तक 15.7 लाख तक पहुंचने की संभावना है. लेकिन कैंसर के बढ़ते मामलों के साथ ही इसकी महंगी दवाइयों और इलाज की लागत भी मरीजों के लिए एक बड़ा संकट बनी हुई है.
कैंसर के इलाज में कीमोथैरेपी, रेडिएशन और टार्गेटेड थेरेपी शामिल होती हैं, जिनकी कीमत लाखों रुपये तक पहुंच सकती है. एम्स दिल्ली के एक अध्ययन के अनुसार, भारत में 60% कैंसर मरीज वित्तीय तंगी के कारण अपना इलाज बीच में ही छोड़ देते हैं या टालते रहते हैं. खासतौर पर ब्रांडेड दवाइयों की ऊंची कीमतें मरीजों के लिए एक बड़ी चुनौती बन जाती हैं.
उदाहरण के लिए, स्तन कैंसर के इलाज में इस्तेमाल होने वाली ट्रास्टुज़ुमैब (trastuzumab) नामक दवा की एक खुराक 75 हजार से एक लाख रुपये के बीच आती है, जबकि मल्टीपल मायलोमा के इलाज में उपयोग होने वाली लेनालिडोमाइड (lenalidomide) की कीमत 50 हजार रुपये से दो लाख रुपये प्रति माह तक हो सकती है. इतने महंगे इलाज के कारण गरीब और मध्यम वर्गीय परिवारों के लिए कैंसर का इलाज कराना लगभग असंभव हो जाता है.
कैसे जेनेरिक दवाएं ला सकती हैं बदलाव?जेनेरिक दवाएं ब्रांडेड दवाइयों का एक किफायती विकल्प होती हैं, जिनमें वही एक्टिव तत्व होते हैं और जो उतनी ही प्रभावी होती हैं. इन दवाओं की कीमत ब्रांडेड दवाओं की तुलना में 50-80% तक कम होती है, जिससे कैंसर मरीजों के लिए इलाज अधिक सुलभ हो सकता है.
जेनेरिक दवाओं का उत्पादन ज्यादाभारत में जेनेरिक दवाओं का उत्पादन बड़े पैमाने पर किया जाता है और अगर सरकार और फार्मा उद्योग इसे बढ़ावा दें, तो लाखों मरीजों को सस्ती और प्रभावी दवाइयां उपलब्ध कराई जा सकती हैं. हालांकि, कई डॉक्टर और अस्पताल अभी भी ब्रांडेड दवाइयों को प्रायोरिटी देते हैं क्योंकि उन्हें इससे अधिक मुनाफा होता है. इसके अलावा, कई मरीज यह भी मानते हैं कि ब्रांडेड दवाएं अधिक प्रभावी होती हैं, जबकि वैज्ञानिक शोध इसके विपरीत संकेत देते हैं.
जरूरी है जागरूकता और सरकारी पहलभारत में कैंसर के इलाज को सस्ता और सुलभ बनाने के लिए सरकार को जेनेरिक दवाओं के उपयोग को बढ़ावा देना होगा. इसके लिए जागरूकता अभियान जरूरी है ताकि मरीज और डॉक्टर दोनों ही जेनेरिक दवाइयों की क्वालिटी और उनकी प्रभावशीलता को समझ सकें. साथ ही, घरेलू उत्पादन में निवेश बढ़ाकर हाई क्वालिटी वाली जेनेरिक दवाओं की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.