AI In early detection of Autoimmune Diseases: एआई टेक्नोलॉजी आज इतनी एडवांस हो गई है कि इसका इस्तेमाल मेडिकल डायग्नोसिस में बड़े स्तर पर किया जाने लगा है. अब एक रिसर्च में ये बात सामने आई है कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीक ऑटोएंटीबॉडी बीमारियों, जैसे रुमेटॉइड आर्थराइटिस (Rheumatoid Arthritis) और ल्यूपस (Lupus) का जल्द पता लगाने में अहम रोल अदा कर सकती है. ज्यादा रिस्क वाले मरीजों को इससे फायदा मिल सकता है.
बीमारियों क जल्द लगेगा पताऑटोइम्यून बीमारियों (Autoimmune Diseases) वाले लोगों में इम्यून सिस्टम गलती से उनके बॉडी के हेल्दी सेल्स और टिश्यू पर हमला करती है. इससे टाइप-1 डायबिटीज, मल्टीपल स्केलेरोसिस, ल्यूपस और रुमेटीइड गठिया शामिल हैं.
अमेरिका के पेन स्टेट कॉलेज ऑफ मेडिसिन (Penn State College of Medicine) के रिसर्चर्स की लीडरशिप वाली टीम ने कहा कि इसका शुरू में पता लगाना बेहद जरुरी है इससे इलाज और बेहतर डिजीज मैनेजमेंट में सुधार हो सकता है.
कैसे काम करेगा AI?मशीन लर्निंग (आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ) का इस्तेमाल करते हुए टीम ने एक नया तरीका विकसित किया है जो प्रीक्लिनिकल लक्षणों वाले लोगों में ऑटोइम्यून डिजीज के प्रोग्रेशन की भविष्यवाणी कर सकती है.
इन बीमारियों के अक्सर डायग्नोज से पहले एक प्रीक्लिनिकल स्टेज शामिल होता है जो हल्के लक्षणों या ब्लड में कुछ एंटीबॉडी द्वारा पहचाना जाता है. जेनेटिक प्रोग्रेसन स्कोर या जीपीएस नाम का ये तरीका प्रीक्लिनिकल से डिजीज स्टेज तक की प्रगति की भविष्यवाणी कर सकती है. स्टडी में टीम ने रुमेटीइड आर्थराइटिस और ल्यूपस के प्रोग्रेशन की भविष्यवाणी करने के लिए रियल वर्ल्ड डेटा का विश्लेषण करने के लिए जीपीएस का इस्तेमाल किया.
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?मौजूदा मॉडल्स की तुलना में ये मेथोडोलॉजी हल्के लक्षणों को निर्धारित करने में 25 से 1,000 फीसदी ज्यादा सटीक पाई गई. पेन स्टेट कॉलेज ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर, डेजियांग लियू (Dajiang Liu) ने कहा, ”ज्यादा प्रासंगिक जनसंख्या को टारगेट कर इस बीमारी की हिस्ट्री वाले लोगों या जो शुरुआती लक्षणों का अनुभव कर रहे हैं, उनके लिए हम मशीन लर्निंग का इस्तेमाल कर परेशानी का हल निकाल सकते हैं. लियू ने कहा कि जीपीएस का उपयोग करके रोग की प्रगति का सटीक पूर्वानुमान लगाने से इलाज को आसान बनाया जा सकता है.
(इनपुट-आईएएनएस)
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