30 Years of Vegetarianism: ये कहानी है एक महिला की जिसने तकरीबन तीन दशक पहले, अहिंसा पर एक कॉलेज कोर्स से प्रेरित होकर मांस खाना बंद करने का फैसला किया, जो शुरू में उत्साह के साथ ऐलान किया गया था. उन्होंने कई सालों से, उन्होंने इस लाइफस्टाइल को जारी रखा है, लेकिन शाकाहार के प्रति उनका नजरिया और समझ विकसित हुई है, जिससे कई अनएक्सपेक्टेज रिएयलाइजेशन हुए हैं.
शुरुआती गलतियां और सीखे गए सबक
सीएनएन की रिपोर्ट के मुताबिक शुरुआत में महिला ने दूसरों की खान-पान की पसंद के बारे में आक्रामक रूप से सामना किया, जिससे अक्सर रक्षात्मकता पैदा होती थी. ये नजरिया किसी को भी मनाने में नकाम रहा और इसके बजाय लोगों को अलग-थलग कर दिया. वक्त के साथ, उन्होंने महसूस किया कि सम्मानजनक जुड़ाव या किसी टॉपिक से पूरी तरह बचना ज्यादा असरदार है. आज वो सिर्फ तभी अपना थॉट शेयर करतीं हैं जब दूसरे लोग वास्तविक जिज्ञासा पेश करते हैं.
फूड च्वॉइसेज को लेकर कशमकश
महिला ने ये स्वीकार किया कि कोई भी डाइटरी च्वॉइस कंपलीट इथिकल सुपीरियरिटी नहीं देती. जबकि वेजिटेरियन होना एनिमल सफरिंग को कम करता है, शाकाहारी डेयरी और अंडे के खेती में शोषण की ओर इशारा करते हैं. यहां तक कि सख्त आहार संबंधी प्रथाएं, जैसे कि फ्रूटारियनिज्म, नैतिक दुविधाएं पेश करती हैं. इसके अलावा, सामाजिक-आर्थिक फैक्टर्स दूसरों के आहार संबंधी फैसले का न्याय करना असंभव बना देते हैं, क्योंकि किफ़ायत और रीच फूड च्वॉइसेज को आकार देने में अहम भूमिका निभाते हैं.
मीट छोड़ना कोई सैक्रिफाइस नहीं है
शुरुआती आशंकाओं के उलट, मांस के बिना जीना कोई बड़ा त्याग नहीं है. अपने कॉलेज के सालों के दौरान, उनका आहार मुख्य रूप से पिज्जा और फ्राइज पर आधारित था.। समय के साथ, रेस्टोरेंट और किराने की दुकानों में वेज ऑपशंस काफी बढ़ गए हैं, जिससे ऐसी लाइफस्टाइल को मेंटेन रखना आसान हो गया है. यहां तक कि विदेश यात्रा करते वक्त भी, उन्हें शाकाहारी भोजन के विकल्प मैनेजेबल लगे, मंगोलिया जैसे दुर्लभ अपवादों के साथ. प्लांट बेस्ट मीट सब्सटीच्यूट और नॉनडेरी प्रोडक्टस के राइज ने वेजिटेरियन लिविंग को और आसान बना दिया है. महिला इन नए विचारों की सराहना करती हैं, जो एनिमल हार्म के बिना क्रेविंग्स को सटिस्फाई करते हैं.
कल्चरल शिफ्ट और इसका असर
महिला ने ग्लोबल लेवल पर मांस की खपत को कम करने का विचार का समर्थन किया है, वेजिटेरियंस की लिस्ट में उनके ससुराल वाले भी शामिल हैं, जो अब ज्यादातर शाकाहारी भोजन खाते हैं. रिसर्च और बेहतर पौधे-आधारित विकल्पों द्वारा समर्थित बढ़ती जागरूकता, ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपने मांस सेवन को कम करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है. ये कल्चरल शिफ्ट पर्सनल हेल्थ, पर्यावरण और जानवरों को फायदा पहुंचाता है.
30 साल तक मीट न खाने से क्या सीखा?
30 साल के वेजिटेरियन डाइट फॉलो करने के बाद, महिला इस बात को लेकर खुश हैं कि समाज ज्यादा सस्टेनेबल और इथिकल ईटिंग हैबिट्स को अपना रहा है. उनका मनना है कि मीट की खपत कम होने से ये एक बेहतर दुनिया के लिए एक बड़ा योगदान होगा.
Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.