ग्लियोब्लास्टोमा दिमाग या रीढ़ की हड्डी को प्रभावित करने वाला एक जानलेवा ट्यूमर है. यह ब्रेन कैंसर का सबसे आम और घातक रूप है जिससे बचना लगभग नामुमकिन होता है. इससे ग्रस्त व्यक्ति ज्यादा से ज्यादा 12 से 15 महीने ही जीवित रह पाता है. और मात्र 6.9 प्रतिशत रोगी ही पांच साल से अधिक जीवित रह पाते हैं.
यह कैंसर अक्सर लगातार सिरदर्द, दौरे, संज्ञानात्मक परिवर्तन और तंत्रिका संबंधी कमजोरियों जैसे लक्षणों के साथ शुरू होता है, जो उनकी जीवन की गुणवत्ता को प्रभावित करते हैं. हालांकि, हाल के शोध में इम्यूनोथेरेपी को ग्लियोब्लास्टोमा के इलाज में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में देखा जा रहा है.
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ग्लियोब्लास्टोमा की विशेषताएं
ग्लियोब्लास्टोमा एक नेचुरल रूप से बनने वाला ट्यूमर है. इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा ग्रेड 4 ट्यूमर के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जो कैंसर के सबसे खतरनाक रूपों में से एक है. ब्रिटेन में हर साल लगभग 3,200 नए मामलों का निदान किया जाता है. वैश्विक स्तर पर, प्रति 1,00,000 लोगों पर लगभग 3.2 से 4.2 मामले होते हैं, जिससे हर साल लगभग 1,50,000 नए मामले सामने आते हैं.
क्या है इम्यूनोथेरेपी
इम्यूनोथेरेपी एक प्रकार का कैंसर ट्रीटमेंट है. इसमें ट्यूमर को खत्म करने के लिए बॉडी की नेचुरल इम्यूनिटी को बढ़ाया जाता है.
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इम्यूनोथेरेपी का संभावित लाभ
इम्यूनोथेरेपी के प्रभावी उपयोग में चुनौतियां हैं. लेकिन ग्लियोब्लास्टोमा के ट्यूमर में विभिन्न उत्परिवर्तन होते हैं, जिससे उन्हें लक्षित करना कठिन हो जाता है. हाल के परीक्षणों से यह पता चला है कि मस्तिष्कमेरु द्रव में इम्यूनोथेरेपी को सुरक्षित रूप से इंजेक्ट किया जा सकता है, और शोधकर्ता इसे और अधिक प्रभावी बनाने के तरीकों पर काम कर रहे हैं.
भविष्य में बन सकता है एक बेहतरीन उपचार
ग्लियोब्लास्टोमा के लिए इम्यूनोथेरेपी के क्षेत्र में अनुसंधान तेजी से विकसित हो रहा है. हालांकि वर्तमान में इसके लिए कोई स्वीकृत चिकित्सकीय रूप से उपलब्ध इम्यूनोथेरेपी नहीं है, लेकिन शोधकर्ता इस दिशा में काम कर रहे हैं.
एक्सपर्ट की राय
कार्डिफ यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता मैथ्यू क्लेमेंट ने कहा कि वे इस बीमारी के इलाज के लिए इम्यूनोथेरेपी के विकास पर काम कर रहे हैं. उनका प्रयास उन अवरोधों को दरकिनार करने का है जो उपचार को ट्यूमर तक पहुंचने से रोकते हैं.
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