हाल ही में हुए एक शोध ने यह संकेत दिया है कि 50 वर्ष से कम आयु के लोगों में मोटापे के कारण पैंक्रियाटिक कैंसर का खतरा 20 प्रतिशत तक बढ़ सकता है.
ओहायो स्टेट यूनिवर्सिटी के वेक्सलर मेडिकल सेंटर के शोधकर्ताओं के अनुसार, पैंक्रियाटिक कैंसर के बारे में लोगों की जागरूकता कम है, और अधिकांश लोग मानते हैं कि यह बीमारी केवल बुजुर्गों को प्रभावित करती है. हालांकि, यह अध्ययन दर्शाता है कि पैंक्रियाटिक कैंसर की दर हर साल लगभग एक प्रतिशत बढ़ रही है, और 40 साल से कम उम्र के लोगों में इसके मामले अधिक आम हो रहे हैं.
शोध की विधि
इस अध्ययन में, शोधकर्ताओं ने 4 से 7 अक्टूबर तक अमेरिका में 1,004 लोगों का सर्वेक्षण किया. इस सर्वे में पैंक्रियाटिक कैंसर के जोखिम कारकों के बारे में प्रश्न पूछे गए. परिणामों से पता चला कि 50 वर्ष से कम आयु के आधे से अधिक (53 प्रतिशत) वयस्कों ने कहा कि वे बीमारी के शुरुआती लक्षणों को पहचानने में असमर्थ हैं. इसके अलावा, एक-तिहाई से अधिक (37 प्रतिशत) का मानना था कि वे अपनी स्थिति को बेहतर बनाने के लिए कुछ नहीं कर सकते.
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जागरूकता की कमी
इस अध्ययन के परिणाम बताते हैं कि एक-तिहाई से ज्यादा (33 प्रतिशत) लोग यह मानते हैं कि केवल बड़े उम्र के व्यक्तियों को ही पैंक्रियाटिक कैंसर का खतरा होता है. क्रूज-मोनसेरेट ने कहा, “यह चिंताजनक है क्योंकि अग्नाशय के कैंसर के जोखिम को कम करने के लिए सबसे पहला कदम स्वस्थ वजन बनाए रखना है. मोटापा इस कैंसर के जोखिम को 20 प्रतिशत तक बढ़ा देता है.”
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आनुवंशिकी और जीवनशैली संबंधी कारक
अमेरिकन कैंसर सोसायटी (एसीएस) के अनुसार, केवल 10 प्रतिशत पैंक्रियाटिक कैंसर आनुवंशिक जोखिम से संबंधित होते हैं, जिसमें बीआरसीए जीन और लिंच सिंड्रोम जैसे मार्कर शामिल हैं. क्रूज-मोनसेरेट ने इस तथ्य पर जोर दिया कि “आप अपने जीन नहीं बदल सकते, लेकिन आप अपनी जीवनशैली को सुधार सकते हैं. मोटापे को कम करना अधिकतर लोगों के लिए संभव है, और यह टाइप 2 डायबिटीज, अन्य कैंसर, और हृदय रोग के जोखिम को भी कम कर सकता है.”