What is Nemaline Myopathy: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने अपनी दोनों बेटियों की बीमारी को लेकर बात की. उन्होंने बताया कि दोनों बच्चियों को रेयर कॉन्जेनाइटल डिसऑर्डर है जिसे ‘नेमालाइन मायोपैथी’ कहा जाता है. ये एक ऐसा मेडिकल कंडीशन है जो मसल प्रोटीन को नुकसान पहुंचाता है, जिससे मांसपेशियों में कमजोरी आने लगती है, जिसके बाद मरीज को सांस लेने और भोजन करने में दिक्कतें होती हैं. आंकड़ों के मुताबिक 50,000 में से किसी एक को ये बीमारी होती है.
चैलेंजिंग है ये रेयर मसल डिसऑर्डर
भारत के मुख्य न्यायाधीश बताया कि इस डिसऑर्डर की वजह से उनकी फैमली को कितना बड़े इमोशल चैलेंज का सामना करना पड़ता है, साथ ही बेटियों को बायोप्सी जैस दर्द भरे डायग्नोसिस भी झेलना पड़ता है. हालांकि मौजूदा वक्त में इस बीमारी कोई पुख्ता इलाज नहीं है, लेकिन फिजियोथेरेपी और रिस्पिरेटरी सपोर्ट ट्रीटमेंट्स इस डिसऑर्डर को मैनेज करने में मदद कर सकते हैं.
‘नेमालाइन मायोपैथी’ को समझें
मशहूर न्यूरोसर्जन डॉ. पयोज पांडेय (Dr. Payoz Pandey) ने बताया कि ‘नेमालाइन मायोपैथी’ एक रेयर जेनेटिक मसल डिसऑर्डर है जिसमें मसल फाइबर के अंदर धागे जैसी संरचनाओं की मौजूदगी होती है, जो आपके चलने फरने और काम करने की क्षमता पर बुरा असर डालती है. चूंकि ऐसा कई तरह के जीन म्यूटेशन के कारण होता है, इसलिए मांसपेशियों की कमजोरी की गंभीरता के आधार पर इसके 6 प्रकार होते हैं.
बेहतर डायग्नोसिस के लिए जेनेटिक म्यूटेशन को समझना जरूरी है. इसका सबसे गंभीर रूप है जिंदगी के पहले साल में अहम मांसपेशियों की कमजोरी और सांस लेनें में तकलीफ होना. कई मामलों में मरीज की मौत भी हो सकती है. हालांकि अगर माइल्ड डिसऑर्डर है तो इससे जान का खतरा नहीं होता है, लेकिन मसल वीकनेस की वजह से जिंदगी मुश्किल जरूर हो जाती है, जिससे डेली लाइफ की नॉर्मल एक्टिविटीज पर काफी बुरा असर पड़ता है.
डायग्नोसिस में क्या दिक्कतें आती हैं?
नेमालाइन मायोपैथी के डायग्नोसिस में शुरुआती चुनौतियों में से एक इसकी दुर्लभता है. इसलिए इसे मस्कुलर डिसऑर्डर समझ लिया जाता है. अगर बीमारी का पता देर से चलता है तो ये मरीज के लिए नुकसानदेह साबित हो सकता है. इसकी जांच के लिए बायोप्सी की जरूरत पड़ती है, जिसके लिए डॉक्टर्स को काफी सावधानी बरतनी पड़ती है.
‘नेमालाइन मायोपैथी’ का ट्रीटमेंट क्या है?
जैसा कि हमने बताया कि ‘नेमालाइन मायोपैथी’ का कोई पक्का इलाज फिलहाल नहीं है, लेकिन इसको लेकर साइंटिस्ट्स की रिसर्च जारी है. हालांकि मरीज के लिए फिजियोथेरेपी और मसल स्ट्रेंथनिंग जैसे सपोर्टिव केयर काफी मददगार साबित होते हैं. कुछ दवाइयां जेनेटिक म्यूटेशन को जरूर टारगेट करती हैं, लेकिन ये काफी नहीं हैं. फिजियोथेरेपिस्ट हाथों और पैरों की ताकत बढ़ाने में मदद करते हैं, वहीं पल्मोनोलॉजिस्ट इस बात को सुनिश्चित करते हैं की मरीज को सांस लेने में कोई तकलीफ न हो. इसके अलावा परिवार का इमोशनल सपोर्ट भी बेहद जरूरी है ताकि पेशेंट भावनात्मक रूप से कमजोर महसूस न करे.
(Disclaimer: प्रिय पाठक, हमारी यह खबर पढ़ने के लिए शुक्रिया. यह खबर आपको केवल जागरूक करने के मकसद से लिखी गई है. हमने इसको लिखने में घरेलू नुस्खों और सामान्य जानकारियों की मदद ली है. आप कहीं भी कुछ भी अपनी सेहत से जुड़ा पढ़ें तो उसे अपनाने से पहले डॉक्टर की सलाह जरूर लें.)