Bahraich GK: बहराइच के बारे में ये 10 बातें नहीं जानते होंगे आप? कम लोगों को ही पता होगा असली नाम

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Bahraich GK: बहराइच के बारे में ये 10 बातें नहीं जानते होंगे आप? कम लोगों को ही पता होगा असली नाम

Bahraich News: जब आप उत्तर प्रदेश के जिलों को देखेंगे, तो उसी में से एक जिले का नाम है बहराइच. सूबे की राजधानी लखनऊ से बहराइच 127 किलोमीटर दूर है. बहराइच में मूर्ति विसर्जन के दौरान बवाल हो गया, हिंसा भड़क गई, जिसके बाद सबकी निगाहें बहराइच पर टिकी हुई हैं, लेकिन हम आपको रूबरू कराते हैं बहराइच से जुड़ी कुछ खास बातों से. तो शुरुआत करते हैं बहराइच के नाम से.

क्या था बहराइच का पुराना नाम?बहराइच का असली नाम ब्रह्माच है. बहराइच जिले की सरकारी वेबसाइट (bahraich.nic.in) पर इस जिले के पौराणिक महत्व के बारे में बताया गया है, जिसमें यह कहा गया है कि एक पौराणिक तथ्य यह है कि बहराइच का असली नाम ब्रह्माच है. इसे भगवान ब्रह्मा की राजधानी और गंधर्व वन के हिस्से के रूप में जाना जाता था. ऐसा कहा जाता था कि ब्रह्मा जी ने इस वन क्षेत्र को ऋषियों और साधुओं की पूजा के स्थान के रूप में विकसित किया था, इसलिए इस स्थान को ‘ब्रह्माच’ के रूप में जाना जाता था.

भर राजवंश की राजधानीमध्ययुगीन इतिहासकारों के अनुसार, यह स्थान भर राजवंश की राजधानी हुआ करता था, जिसकी वजह से इसे ‘भराइच’ कहा जाता था, जिसे आगे चलकर बहराइच कहा जाने लगा. बहराइच भरो के राजा महाराजा सुहेलदेव की राजधानी रहा है, इसलिए इसे भराइच के नाम से जाना जाता था.

राजा लव का शासनपुराणों के अनुसार, भगवान राम के पुत्र राजा लव और राजा प्रसेनजीत ने बहराइच पर शासन किया था. साथ ही, वनवास के समय पांडव और माता कुंती भी इस स्थान पर आए थे. महाराजा जनक के गुरु ऋषि अष्टावक्र, ऋषि वाल्मीकि और ऋषि बलार्क भी इसी क्षेत्र में निवास करते थे.

विदेशियों ने बताया सुंदर शहरप्रसिद्ध चीनी यात्रियों ह्वेनसांग और फाहियान ने भी इस क्षेत्र का दौरा किया था. अरबी यात्री इब्न बतूता ने भी बहराइच का दौरा किया और लिखा कि यह एक सुंदर शहर है, जो पवित्र सरयू नदी के किनारे स्थित है.

1857 की क्रांति में मारे गए अंग्रेज 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में भी बहराइच ने सक्रिय भूमिका निभाई। 7 फरवरी 1856 को रेजिडेंट जनरल आउटरम ने अवध पर कंपनी का शासन घोषित किया और बहराइच को भी एक केंद्र बनाया. स्वतंत्रता संग्राम के प्रमुख नेता नाना साहेब ब्रिटिश शासन के खिलाफ प्रचार कर रहे थे. नाना साहेब ने बहराइच में स्थानीय शासकों के साथ एक गुप्त बैठक की. बैठक गुल्लाबीर नामक स्थान पर हुई, जहां भिंगा, बौंडी, चहलारी, रेहुआ और चर्दा के राजा इकट्ठे हुए और नाना साहेब के साथ स्वतंत्रता संग्राम का समर्थन करने का वादा किया. चहलारी के राजा वीर बलभद्र सिंह ने भी इस संग्राम में सक्रिय रूप से भाग लिया. बहराइच में विद्रोह की शुरुआत अवध के साथ ही हो गई. उस समय के अंग्रेज अधिकारियों ने भागने की कोशिश की, लेकिन स्थानीय क्रांतिकारियों ने उन्हें घेर लिया और संघर्ष में तीन ब्रिटिश अधिकारी मारे गए. इस प्रकार, पूरे जिले पर स्वतंत्रता सेनानियों का नियंत्रण हो गया.

महात्मा गांधी का बहराइच दौरादूसरे स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी ने 1929 में बहराइच का दौरा किया और एक सार्वजनिक सभा को संबोधित किया. 6 मई 1930 को गांधी जी के नमक आंदोलन के समर्थन में बहराइच में हड़ताल हुई और नमक कानून का उल्लंघन किया गया. इस दौरान कई प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार किया गया. इस तरह आजादी के आंदोलन में भी बहराइच ने भरपूर योगदान दिया. आखिरकार, 15 अगस्त 1947 को देश आजाद हो गया. आजादी के बाद पाकिस्तान से आए लगभग 1375 शरणार्थियों को बहराइच में बसाया गया.

राजा सुहेलदेव का स्मारकबहराइच में श्रावस्ती के महान राजा सुहेलदेव का एक स्मारक है. राजा सुहेलदेव ने 1034 में गजनवी सेनापति गाजी मियां को बहराइच में हराया था. 16 फरवरी 2021 को राजा सुहेलदेव के स्मारक की आधारशिला रखी गई. इस संबंध में आधिकारिक नोट भी जारी किया गया जिसमें कहा गया कि राजा सुहेलदेव ने 1034 में हुई एक प्रसिद्ध लड़ाई में गजनवी सेनापति गाजी सैय्यद सालार मसूद से बहराइच में चित्तौरा झील के किनारे लड़ा, हराया और मार डाला था.

स्‍नान से दूर होता है त्‍वचा रोग बहराइच में एक प्रसिद्ध दरगाह शरीफ है, जिसे फिरोज शाह तुगलक ने बनवाया था. माना जाता है कि इस दरगाह के पानी में स्नान करने से त्वचा रोगों से मुक्ति मिलती है.

कतर्नियाघाट वन्यजीव अभयारण्यबहराइच में कतर्नियाघाट वन्यजीव भी है जो बहराइच जिले के तराई क्षेत्र में है. कतर्नियाघाट 400.6 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. 1975 में इसे स्थापित किया गया था. 1987 में, इसे ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के अंतर्गत लाया गया और किशनपुर वन्यजीव अभयारण्य और दुधवा राष्ट्रीय उद्यान के साथ मिलकर यह दुधवा टाइगर रिज़र्व का हिस्सा बना. इस क्षेत्र में साल और सागौन के जंगल, हरे-भरे घास के मैदान, दलदली क्षेत्र और कई जल स्रोत शामिल हैं. यहां की खासियत यह है कि यहां घड़ियाल, बाघ, गैंडा, गंगा डॉल्फिन, दलदली हिरण, खरगोश, बंगाल फ्लोरिकन, सफेद पीठ और लंबी चोंच वाले गिद्ध समेत कई लुप्तप्राय प्रजातियां पाई जाती हैं.
Tags: Bahraich news, Education, General Knowledge, UP news, Up news todayFIRST PUBLISHED : October 14, 2024, 17:02 IST

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