Understaning Liver Functions Disease In Ayurveda by Gastroenterologist Dr Anil Arora | आयुर्वेद के मुताबिक लिवर के 5 काम क्या-क्या हैं, डॉक्टर से समझिए इस ऑर्गन के फंक्शंस

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Understaning Liver Functions Disease In Ayurveda by Gastroenterologist Dr Anil Arora | आयुर्वेद के मुताबिक लिवर के 5 काम क्या-क्या हैं, डॉक्टर से समझिए इस ऑर्गन के फंक्शंस



Liver In Ayurveda: वेदों में लिवर को तकीमा या यकना कहा गया है. कुछ अन्य प्राचीन साहित्य में लिवर के लिए कालखंड, ज्योतिष, यकृतखंड, यकृतपिंड, रक्तधारा और रक्तशय जैसे शब्दों का प्रयोग किया गया है. लेकिन आयुर्वेद में इस अहम अंग के लिए सबसे आम शब्द ‘यकृत’ है जो ‘याहा’ यानी एक और ‘कृत’ से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ है करता है. इस तरह यकृत शब्द का अर्थ है एक ऐसा अंग जो हमेशा एक्टिव रहता है और शरीर में अहम मेटाबॉलिक फंक्शंस को अंजाम देता है।

आयुर्वेद में लिवर के बारे में क्या बताया गया है?
आयुर्वेद में लिवर की एनाटॉमी, फिजियोलॉजी और पैथोलॉजी की समझ पारंपरिक पश्चिमी चिकित्सा से काफी अलग है. हालांकि, दोनों सिस्टम में लिवर एंब्रॉलजी  की समझ एक जैसी है, लेकिन लिवर डिजीज के डायग्नोसिस और इलाज के लिए आयुर्वेद का नजरिया पारंपरिक नहीं है. आयुर्वेद में उपचार अंग-आधारित के बजाय लक्षण-आधारित ज्यादा है, इसलिए हमें आयुर्वेद ग्रंथों में लिवर या गुर्दे की बीमारियों पर एक अलग चैप्टर नहीं मिलता है. बल्कि, रोग की अवधारणा त्रिदोष पर आधारित है, यानी वात, पित्त और कफ का असंतुलन, जो एक तरह से हिप्पोक्रेटिक और गैलेनिक मेडिसिन में ह्यूमर को संतुलित करने के जैसा है.
लिवर के 5 अहम काम
भारत के मशहूर गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. अनिल अरोड़ा (Dr. Anil Arora) ने बताया कि हेपेटोलॉजिक नजरिए से, पित्त सबसे अहम बायो एलिमेंट है क्योंकि इसका ज्यादातर हिस्सा लिवर प्रोड्यूस करता है, और ये शरीर के डाइजेशन और मेटाबॉलिक फंक्शंस को कंट्रोल करता है. पित्त दोष बहुत सारे शारीरिक कार्यों को नियंत्रित करता है. ये 5 तरह से काम करता है जो इस प्रकार हैं. 
1. पाचक पित्त
पाचक पित्त, छोटी आंत और पेट में स्थित होता है (जिसका मुख्य कार्य भोजन को पचाना, अवशोषित करना और आत्मसात करना है), 
2. रंजक पित्त
रंजक पित्त, मुख्य रूप से लिवर, गॉल ब्लैडर और स्पलीन में स्थित होता है, जो पूरे शरीर में सभी टिश्यू (खासकर खून) को रंग देता है; 
3. आलोचका पित्त
आलोचका पित्त, जो आंखों में स्थित होता है, नजरों के लिए जरूरी होता है; 
4. भारजक पित्त
भारजक पित्त त्वचा में स्थित होता है, जहां इसके मुख्य काम में त्वचा का रंग, बनावट, तापमान और नमी बनाए रखना शामिल है; 
5. साधक पित्त
साधक पित्त, जो ब्रेन  और हार्ट में स्थित होता है, इमोशन और कॉन्शियस थिंकिंग के लिए जिम्मेदार होता है. 
गजब का अंग है लिवर
आयुर्वेद में लीवर को एक उग्र, गर्म अंग के रूप में वर्णित किया गया है क्योंकि यह अग्नि कार्य करता है. ‘अग्नि’ का शाब्दिक अर्थ आग है और आयुर्वेद में अग्नि शब्द का उपयोग भोजन और मेटाबॉलिक प्रोडक्ट के पाचन के अर्थ में किया जाता है. आयुर्वेद में कम से कम 40 विशिष्ट शारीरिक “अग्नि” कार्यों का वर्णन किया गया है, उनमें से 5 को 5 भूताग्नि के रूप में जाना जाता है, जो खास तौर से लीवर में स्थित हैं.  कार्यात्मक रूप से, भूताग्नि भोजन को जैविक रूप से उपयोगी पदार्थों में बदलने के लिए जिम्मेदार हैं.  पाचन प्रक्रिया भोजन को उसके सबसे बुनियादी रूप में तोड़ देती है.  5 मूल तत्व (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश) और भूताग्नि (प्रत्येक तत्व के लिए एक) इन तत्वों को एक ऐसे रूप में परिवर्तित करती है जिसका शरीर उपयोग कर सकता है. सिर्फ ये अधिक परिष्कृत पदार्थ ही वास्तव में परिसंचरण के माध्यम से टिश्यूज को उपलब्ध कराए जाते हैं.



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