एक शोध में यह बात सामने आई है कि समान बीमारी में महिला मरीजों की तुलना में पुरुषों को ज्यादा दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं. हिब्रू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शोहम चोशेन हिलेल और मिका गुज़िकेविट्स के नेतृत्व में किए गए शोध से पता चला है कि आपातकालीन कक्षों में दर्द के इलाज में महिलाओं और पुरुषों को दी जाने वाली दर्द निवारक दवाओं में अंतर होता है.
शोध में क्या कहा गया है?
हिब्रू विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने अमेरिकी और इजरायली स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों के डेटा का विश्लेषण किया. उन्होंने पाया कि दर्द के स्तर, आयु, चिकित्सा इतिहास और शिकायतों पर विचार करने के बाद भी महिला रोगियों को पुरुष रोगियों की तुलना में कम दर्द निवारक दवाएं दी जाती हैं.
इमरजेंसी कंडीशन में भी देरी से दिया जाता है पेन किलर
स्टडी से पता चलता है कि महिला मरीजों को ओपिओइड और गैर-ओपिओइड दोनों तरह की दर्द निवारक दवाओं के लिए प्रिस्क्रिप्शन मिलने की संभावना कम होती है. महिला मरीजों को आपातकालीन विभाग में अतिरिक्त 30 मिनट तक इंतजार करना पड़ता है.
क्यों होती है ऐसी भेदभाव?
शोधकर्ताओं का मानना है कि यह भेदभाव महिलाओं के दर्द को कम गंभीरता से लेने के कारण होता है. लंबे समय से चली आ रही रूढ़िवादी धारणाओं के कारण महिलाओं के दर्द को अक्सर नजरअंदाज कर दिया जाता है.
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महिलाओं के स्वास्थ्य पर क्या पड़ता है असर?
महिलाओं को कम दर्द निवारक दवाएं मिलने से उनके स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव पड़ सकता है. इससे उन्हें ठीक होने में अधिक समय लग सकता है और कई जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं.
विशेषज्ञों का क्या कहना है?
हिब्रू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर शोहम चोसेन हिलेल ने कहा, हमारे शोध से पता चलता है कि आपातकालीन देखभाल में महिलाओं के दर्द को कैसे मापा जाता है और उसका इलाज कैसे किया जाता है, इस बारे में एक परेशान करने वाला पूर्वाग्रह है. यह शोध एक महत्वपूर्ण मुद्दे को उजागर करता है. महिलाओं को पुरुषों के समान दर्द निवारक दवाएं मिलनी चाहिए.
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