अमेठी, रायबरेली नहीं, यूपी में इस सीट पर खुल सकता है कांग्रेस का खाता, आंकड़ों के गणित में पार्टी आगे!

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अमेठी, रायबरेली नहीं, यूपी में इस सीट पर खुल सकता है कांग्रेस का खाता, आंकड़ों के गणित में पार्टी आगे!



लोकसभा चुनाव 2024 में उत्तर प्रदेश पर पूरे देश की नजर है. यहां लोकसभा की 80 सीटें हैं. भाजपा यहां से बड़ी जीत हासिल करने का दावा कर रही है. वह पीएम नरेंद्र मोदी के करिश्माई नेतृत्व, राममंदिर निर्माण और सीएम आदित्य योगी की छवि पर फोकस कर चुनाव प्रचार में कूद चुकी है. ऐसे में राजनीति के धुरंधर भी बताने लगे हैं कि भाजपा बड़ी जीत की ओर बढ़ रही है. लेकिन, आज की कहानी में सियासी रूप से सबसे बड़े सूबे में कांग्रेस की स्थिति पर चर्चा होगी. आज उत्तर प्रदेश में कांग्रेस की स्थिति ऐसी हो गई है कि राजनीति के जानकार भी भरोसे के साथ उसे कोई एक सीट नहीं दे पा रहे हैं. बीते कई चुनावों से कांग्रेस के लिए यूपी की दो सीटें रायबरेली और अमेठी को सुरक्षित बताया जाता था. लेकिन, बीते चुनाव में इस सुरक्षा में भी सेंध लग गई. कांग्रेस नेता राहुल गांधी खुद अमेठी से चुनाव हार गए. इस बार सोनिया गांधी राज्यसभा की सदस्य बन चुकी हैं और रायबरेली से चुनाव नहीं लड़ेंगी.

ऐसे में सवाल यह है कि क्या इस सबसे बड़े सूबे से कांग्रेस का सफाया हो जाएगा? इसी जवाब की तलाश में हम आपके साथ एक सीट की चर्चा करते हैं. उस सीट का गणित कांग्रेस के पक्ष में दिख रहा है. अगर ऐसा होता है तो संकट से जूझ रही पार्टी को बड़ी राहत मिलेगी.

हम बात कर रहे हैं गंगा-जमुना के बीच बसे सहारनपुर की. इस जिले की सीमा तीन राज्यों हरियाणा, उत्तराखंड और हिमाचल से लगती है. लकड़ी के कारोबार के लिए मशहूर जिले की जनता ने हिंदू-मुस्लिम प्रत्याशियों को कई बार विधायक बनाकर विधानसभा भेजा. कांग्रेस, सपा, भाजपा और निर्दलीय प्रत्याशी भी जीते, लेकिन 2019 में मोदी लहर के बावजूद यहां से बसपा प्रत्याशी हाजी फजलुर्रहमान करीब 20 हजार वोट से विजय रहे.

सहारनपुर लोकसभा दुनिया भर में इस्लामी तालीम के लिए विख्यात दारुल उलूम संस्थान भी सहारनपुर के देवबंद कस्बे में स्थित है. पिछले चुनाव की बात करें तो बसपा प्रत्याशी हाजी फजुर्लरहमान ने जीत दर्ज की थी. उस चुनाव में सपा और बसपा का गठबंधन था. दूसरे नंबर पर बीजेपी के राघव लखनपाल शर्मा थे जिनके खाते में 4,91,722 वोट गए थे. तीसरे नंबर पर कांग्रेस के इमरान मसूद थे. उन्हें 2,07,068 वोट मिले थे.

तीन विस सीटों पर भाजपासहारनपुर लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत पांच विधानसभा सीटें हैं. 2022 के विधानसभा चुनावों में तीन पर भाजपा और दो पर समाजवादी पार्टी ने जीत हासिल की थी. भाजपा के हिस्से में सहारनपुर नगर, देवबंद और रामपुर विधानसभा सीटें आईं, जबकि सहारनपुर देहात और बेहट विधानसभा सपा के हिस्से में आई.

वैसे बड़ी बात ये है कि सहारनपुर सीट पर सबसे ज्यादा बार कांग्रेस की जीत हुई है. 1952 से लेकर 1971 तक कांग्रेस का ही इस सीट पर दबदबा रहा है. इस सीट से दो बार अजित प्रसाद और दो बार सुंदरलाल सांसद चुने गए हैं. 1984 में भी कांग्रेस ने वापसी करते हुए इस सीट पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2004 में सपा तो 2009 में बसपा ने यहां जीत का परचम लहराया. 2014 की मोदी लहर में जरूर बीजेपी ने इस सीट को अपने नाम किया था. अब पिछले चुनाव में विपक्ष ने सहारनपुर से जीत दर्ज की.

जातीय समीकरणसहारनपुर के जातीय समीकरण की बात करें तो यहां पर मुस्लिम समुदाय के लोग ज्यादा हैं. उनकी संख्या 35 फीसदी से ज्यादा है. इस सीट पर दलित फैक्टर भी मायने रखता है और उन पर बसपा की मजबूत पकड़ है. गुर्जर-सैनी जैसी जातियां भी निर्णायक भूमिका निभाती हैं. बसपा के संस्थापक कांशीराम 1998 के लोकसभा चुनाव में यहां से न केवल भाजपा के नकली सिंह हार गए थे, बल्कि तीसरे नंबर पर चले गए थे. दूसरे नंबर पर कांग्रेस के रशीद मसूद थे.

कांग्रेस की संभावित जीत का क्या है आधार?सहारनपुर में इमराम मसूद को एक मजबूत उम्मीदवार बताया जा रहा है. 2014 में जब पूरे देश में मनमोहन सरकार के खिलाफ जनता में नाराजगी थी तब यहां से इमराम मसूद कांग्रेस के उम्मीदवार थे. उन्हें 4.07 लाख वोट मिले थे. उस चुनाव में विपक्ष पूरी तरह बिखरा हुआ था. सपा, बसपा और कांग्रेस तीनों ने अपने-अपने उम्मीदवार उतारे थे. इमरान में अपने दम पर इतना वोट हासिल किया था. बसपा उम्मीदवार को 2.35 लाख और सपा उम्मीदवार को 52 हजार वोट मिले थे. इस बार के चुनाव में सपा और कांग्रेस साथ हैं. दूसरी तरफ बसपा का बीते चुनाव जितना प्रभाव नहीं दिखा रख रहा है. बीते काफी समय से वह भाजपा के खिलाफ आक्रामक नहीं है. ऐसे में भाजपा विरोधी वोटों के इमरान मसूद के पक्ष में गोलबंद होने की संभावना है. इसी संभावना के आधार पर यहां से कांग्रेस का खाता खुल सकता है. रही बात, 2019 की तो उस चुनाव में सपा-बसपा ने साथ चुनाव लड़ा था और यहां से बसपा उम्मीदवार को जीत मिली थी.

3 बार भाजपा की जीतयहां से 1996 और फिर 1998 में भाजपा के नकली सिंह सांसद बने. इसके बाद 2014 तक भाजपा के लिए सूखा रहा. 2014 में हुए चुनाव में मोदी लहर में भाजपा के राघव लखनपाल ने जीत हासिल कर सूखा खत्म किया था.

सहारनपुर का इतिहास1952 में पहला लोकसभा चुनाव हुआ. 1952 में कांग्रेस के अजित प्रसाद जैन पहली बार सहारनपुर लोकसभा सीट से सांसद बने थे. उस समय हरिद्वार लोकसभा सीट भी सहारनपुर के अंतर्गत आती थी. हरिद्वार लोकसभा सीट से कांग्रेस के सुंदरलाल ने जीत हासिल की थी. 1962, 1967 और 1971 में भी कांग्रेस के सुंदरलाल सांसद बने. 1977 और 1980 में जनता पार्टी के रशीद मसूद विजेता रहे. 1984 में कांग्रेस ने एक बार फिर से बाजी मारी और यशपाल सिंह निर्वाचित हुए. 1989 और 1991 में जनता दल की तरफ से रशीद मसूद के सिर सांसद का ताज सजा. 1996 में पहली बार भारतीय जनता पार्टी की तरफ से नकली सिंह ने बाजी मार ली, लेकिन बीच में ही सरकार गिर गई. 1998 में फिर से नकली सिंह सांसद बने. तब भी सरकार ज्यादा नहीं चली. 1999 में बसपा का पहली बार यहां पर खाता खुला. मंसूर अली खान सांसद बने. इसी तरह सपा की तरफ से 2004 में रशीद मसूद को सांसद चुना गया. 2009 में बसपा के जगदीश सिंह राणा, 2014 में भाजपा से राघव लखनपाल और 2019 में एक बार फिर से बसपा के हाजी फजर्लुरहमान सांसद बने.
.Tags: Loksabha Election 2024, Loksabha Elections, Saharanpur newsFIRST PUBLISHED : April 2, 2024, 14:29 IST



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