संजय यादव/बाराबंकी : उत्तर प्रदेश में गिने चुने जिलों में ही अफीम) की खेती होती है, राजधानी लखनऊ का पड़ोसी जिला बाराबंकी अफीम की खेती के लिए फेमस था. जिले में पहले सैकड़ों अफीम की खेती करने वाले किसान हुआ करते थे, बीते कुछ दशकों से अफीम की खेती में किसानों को नुकसान होने लगा था तो उत्तर प्रदेश के कई जिलों में किसानों ने सरकार द्वारा दिए जा रहे अफीम की खेती के लाइसेंस को लेने से मना कर दिया था.
अफीम की खेती किसानों के लिए ज्यादा मुनाफा कमाने के लिए एक बेहतर विकल्प है. वैसे तो अफीम की खेती करना इतना आसान नहीं है, क्योंकि इसके लिए कई तरह के नियम और शर्तों का पालन करना होता है. अफीम की खेती लिए सरकार से लाइसेंस लेना पड़ता है. बाराबंकी जिला कभी देश ही नहीं विदेशो में भी काले सोने के लिए मशहूर था. लेकिन अब यहां अफीम की खेती काफी कम पैनामे पर होती है .इसकी खेती के लिए आपको लाइसेंस लेना होगा. अफीम की खेती के लिए लाइसेंस वित्त मंत्रालय के सेंट्रल ब्यूरो ऑफ नारकोटिक्स विभाग से मिलता है. अगर आप मानक के अनुसार खेती करते हैं तभी आपको लाइसेंस सरकार द्वारा दिया जाता है.
अफीम की खेती में परेशानियांबाराबंकी जिले के शरीफाबाद गांव में भी कई किसान अफीम की खेती कर रहे हैं. यहां के किसान भारत कुमार ने बताया अफीम की खेती करीब हम 1995 से कर रहे हैं. उस वक्त गांव में अफीम के लाइसेंस बहुत ही ज्यादा हुआ करते थे. जिससे अफीम की रखवाली करने में कोई दिक्कत नहीं होती थी. अब गांव में बहुत कम लोगों के पास अफीम की खेती का लाइसेंस है. हम लोगों को रखवाली करने में काफी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है. रातभर जागकर अफीम की खेती की रखवाली करनी पड़ती हैं. गौरतलब है कि सरकार के कर्मचारी अफीम के खेतों की समय-समय पर देखरेख करते हैं और जब फसल से अफीम निकालने का समय आता है तब अधिकारी किसान के खेत पर पहुंचते हैं और उनकी नजरों के सामने अफीम निकाली जाती है. अफीम निकालने के बाद में किसानों को सरकार के द्वारा निर्धारित किए गए मूल्य के अनुसार उसे खरीद लिया जाता है. जब तक यह फसल तैयार नहीं हो जाती है तब तक किसान अपने खेत को यूं ही नहीं छोड़ सकते हैं.
लागत ज्यादा फिर भी बंपर मुनाफाकिसान भारत कुमार ने बताया कि अफीम की खेती में लागत भी थोड़ी ज्यादा आती है क्योंकि इसमें बीज, जुताई, बुवाई व पानी का खर्च थोड़ा ज्यादा आ जाता है. लेकिन मुनाफा भी किसानों को इस खेती से अच्छा मिलता है क्योंकि अफीम काफी महंगे दामों में बिकता है. अगर रेट अच्छा मिल गया तो एक हजार रुपये किलो तक पोस्ता दाना बिक जाता है जिससे किसानों को लाखों रुपए का मुनाफा होता है.
ऐसे करें अफीम की खेतीकिसान भारत कुमार ने बताया कि अफीम की खेती रबी की सीजन में यानी सर्दियों में की जाती है. इसकी फसल की बुवाई अक्टूबर-नवंबर महीने में कई जा जाती है. बुवाई से पहले जमीन को 3-4 बार अच्छे से जोतना पड़ता है. इसके साथ ही, खेत में पर्याप्त मात्रा में गोबर की खाद या वर्मी कंपोस्ट भी डालनी होती है, ताकि पौधों का अच्छे से विकास हो सके. आपको एक हेक्टेयर में इसकी खेती करने के लिए करीब 7-8 किलो बीज की जरूरत पड़ती है. यहां आपको यह ध्यान रखना जरूरी है कि अगर आप अफीम की खेती के लिए लाइसेंस ले लेते हैं तो आपको एक न्यूनतम सीमा तक पैदावार करनी जरूरी होती है.
90-100 दिन बाद आते हैं फूलकिसान भारत कुमार ने बताया कि अफीम की बुवाई के 90 -100 दिन बाद इसके पौधों में फूल आने लगते हैं. इन फूलों के झड़ने के बाद उसमें डोडे लग जाते हैं. अफीम की हार्वेस्टिंग रोज थोड़ी-थोड़ी की जाती है. इसके लिए इन डोडों पर चीरा लगाकर रात भर के लिए छोड़ दिया जाता है और अगले दिन सुबह उसमें से निकले तरल पदार्थ को इकठ्ठा कर लिया जाता है. जब तरल निकलना बंद हो जाता है तो फिर उन्हें को सूखने के लिए छोड़ दिया जाता है. फसल सूखने के बाद उसके डोडे तोड़कर उससे बीज निकाल लिए जाते हैं. हर साल अप्रैल के महीने में नार्कोटिक्स विभाग किसानों से अफीम की फसल की खरीदारी करता है
इन बातों का रखें ध्यानकिसानों को अफीम की खेती के लिए नारकोटिक्स विभाग से सबसे पहले मंजूरी लेनी होगी. इससे जुड़ी सेवा शर्ते नारकोटिक्स विभाग की बेवसाइट से प्राप्त की जा सकती है. वही अगर आप अफीम की खेती कर रहे हैं और ओलावृष्टि, बारिश या दूसरी किसी वजह से फसल खराब हो जाए, तो आपको तुरंत नार्कोटिक्स विभाग को सूचित करना होता है. इसके साथ ही बेकार हो चुकी फसल को पूरी तरह नष्ट करना होता है, ताकि आप लाइसेंस निरस्त होनी की प्रक्रिया से बच सकें.
.Tags: Agriculture, Barabanki News, Local18, Uttar Pradesh News HindiFIRST PUBLISHED : April 2, 2024, 13:20 IST
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