रजनीश यादव/ प्रयागराज: उत्तर भारत में लगातार मौसम खराब होने के कारण दिन निकलना मुश्किल हो गया था. सूर्य की रोशनी लगातार ना पड़ने से रवि की फसलों पर नकारात्मक असर पड़ रहा था. इसको लेकर किसानों की चिंता बढ़ रही है. लगातार सूर्य की रोशनी ना पड़ने से फसलों के विकास में बाधा उत्पन्न होती है और उसका विन्यास भी कम होता है. इससे फसलों में कई प्रकार के रोग भी लगने लगते हैं, जिससे फसल की उपज कम होती है.
उपजिला कृषि अधिकारी विकास मिश्रा बताते हैं कि गेहूं की फसल में जंगली जई, दूब घास, हिरन खुरी, बथुआ आदि का प्रकोप होता है. इन खरपतवारों के कारण गेहूं की फसल में 30-45 प्रतिशत की हानि हो सकती है. इसलिए कृषकगण 2-4 डी सोडियम लवण 80 प्रतिशत, डब्ल्यूपी 01 लीटर दवा 500-600 लीटर पानी में मिलाकर पहली सिंचाई के बाद स्प्रे करें.
गेहूं की फसल में लगने वाले रोग और उसके निदान
लगातार धूप न निकलने से और कोहरे की वजह से गेहूं की फसल में कीड़े और बीमारियों के कारण 5 से 10 प्रतिशत तक उपज की हानि हो जाती है और दानों तथा बीज की गुणवत्ता भी खराब होती है. जिस प्रकार हमें लोहे पर जंग लगा हुआ नजर आता है, उसी प्रकार गेहूं पर गेरुई का प्रकोप होता है. गेहूं की फसल में तीन प्रकार की गेरुई लगती है.
गेहूं का धारीदार रतुआ या पीला रतुआ रोग- यह कवक जनित रोग है. इस रोग के लक्षण प्रारम्भ में पत्तियों के उपरी सतह पर पीले रंग की धारियों के रूप में देखने को मिलते हैं, जो बाद में पूरी पत्तियों को पीला कर देते हैं. तथा पीला पाउडर जमीन पर भी गिरने लगता है. इस स्थिति को गेहूं में पीला रतुआ कहते हैं. यदि यह रोग कल्ले निकलने वाली अवस्था या इससे पहले आ जाता है, तो फसल में बाली नहीं आती है.
गेहूं का पत्ती रतुआ या भूरा रतुआ रोग- यह बीमारी कवक से होती है. इस रोग के स्पोर्स हवा द्वारा फसल को संक्रमित करते हैं,रोग से ग्रसित पौधे की पत्तियों पर भूरे रंग के धब्बे दिखाई देते हैं जो बाद में काले हो जाते हैं. रोगी पत्तियां जल्दी सूख जाती हैं, जिससे प्रकाश संश्लेषण में भी कमी आती है और दाने हल्के रह जाते हैं.
गेहूं का तना रतुआ या काला रतुआ रोग- इस रोग का प्रकोप देर से बोई गई फसलों पर अधिक होता है. यह गर्म और तर वातावरण में अधिक पनपता है. साधारणतया यह रोग मार्च के प्रथम सप्ताह में देखा जाता है. इसका प्रकोप पौधे के तने पर होता है और तने के ऊपर लाल भूरे रंग के उभरे हुए धब्बे बन जाते हैं, जो रोग के अधिक प्रकोप में पौधों के अन्य भागों पर भी देखा जा सकता है.
गेहूं का कंडवा रोग या अनावृत्त कण्ड रोग
यह एक बीज जनित फफूद रोग है.. संक्रमित बीज ऊपर से देखने में बिल्कुल स्वस्थ बीजों की तरह ही दिखाई देता है. खड़ी फसल से रोग ग्रस्त पौधों को पहचानना संभव नहीं है. यह रोग बाली आने के बाद ही दिखाई देता है| रोगी पौधों की बालियों में दाने काले पाउडर के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं, जो कि हवा से उड़कर अन्य स्वस्थ बालियों में बन रहे नए बीजों को भी संक्रमित कर देते हैं.
गेहूं का सेंहू रोग
गेहूं की फसल का यह रोग सूत्रकृमि द्वारा फैलता है. इस रोग के प्रभाव के कारण पौधे की पत्तियां मुड़ जाती हैं. दानों के स्थान पर बालियां फूल जाती हैं. बालियों पर एक गोंद जैसा चिपचिपा पदार्थ पाया जाता है. बालियों पर पीली कत्थई रंग की रचना सी बन जाती है. रोगी बालियां अन्य बालियों से अपेक्षाकृत छोटी होती हैं व अधिक समय तक हरी बनी रहती हैं. रोगी पौधे छोटे रह जाते हैं.
गेहूं का चूर्णिल आसिता या भभूतिया रोग
यह रोग फफूद द्वारा लगता है. इस रोग में पत्तियों की उपरी सतह पर गेहूं के आटे के रंग के सफेद धब्बे पड़ जाते हैं, जो कि उपयुक्त परिस्थितियां होने पर बालियों तक पहुंच जाते हैं. बाद में पत्तियों का रंग पीला व कत्थई होकर पत्तियां सूख जाती हैं. इस रोग के कारण दाना हल्का बनता है.
.Tags: Hindi news, Local18, UP newsFIRST PUBLISHED : January 28, 2024, 08:00 IST
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