कोरोना महामारी का साया अभी दुनिया से छंटा भी नहीं है कि वैज्ञानिकों ने अब एक नए खतरे की ओर इशारा किया है- आर्कटिक की बर्फ में दबे हुए प्राचीन वायरस, जिन्हें ‘जोंबी वायरस’ कहा जा रहा है. वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पिघलती बर्फ इन वायरसों को बाहर ला सकती है, जिससे भविष्य में एक नई महामारी का खतरा बढ़ सकता है.
इन वायरसों को वैज्ञानिक ‘मेथ्यूसेलह माइक्रोब्स’ या ‘जोंबी वायरस’ कह रहे हैं. ‘द गार्जियन’ अखबार के अनुसार, शोधकर्ताओं ने पहले ही इनमें से कुछ वायरस का पता लगा लिया है. वैज्ञानिकों का कहना है कि इन वायरसों से भविष्य में एक नई ग्लोबल हेल्थ इमरजेंसी उत्पन्न हो सकता है, यह किसी नए वायरस की वजह से नहीं होगा, बल्कि प्राचीन बीमारियों के जिंदा हो जाने से होगा.एक्सपर्ट के बयानरॉटरडैम के इरास्मस मेडिकल सेंटर की वायरोलॉजिस्ट मैरियन कूपमंस ने मीडिया आउटलेट को बताया कि हमें नहीं पता कि पर्माफ्रॉस्ट में कौन-कौन से वायरस पड़े हुए हैं, लेकिन मुझे लगता है कि यह एक वास्तविक खतरा है कि उनमें से कोई वायरस किसी बीमारी के प्रकोप का कारण बन सकता है. उदाहरण के लिए, पोलियो के एक प्राचीन रूप का प्रकोप. हमें यह मान लेना चाहिए कि ऐसा कुछ हो सकता है.
48,500 साल पुराने वायरस संक्रामक हो सकते हैं2023 में, जीनोमिस्ट जीन-मिशेल क्लेवेरी और मैटेरियल्स साइंटिस्ट चैंटल अबर्जेल ने कई पर्माफ्रॉस्ट मेगावायरस खोजे थे, जिनमें से एक 48,500 साल पुराना था. 2014 में, ऐक्स-मार्सिले यूनिवर्सिटी के शोधकर्ता प्राचीन पर्माफ्रॉस्ट से वायरस को अलग करने वाले पहले व्यक्ति थे.
पर्माफ्रॉस्ट क्या है?पर्माफ्रॉस्ट एक प्रकार की मिट्टी या तलछट है जो साल के अधिकांश समय जमी रहती है, आमतौर पर कम से कम दो साल तक लगातार. आर्कटिक और अंटार्कटिक जैसे ठंडे क्षेत्रों में पाए जाने वाले पर्माफ्रॉस्ट में बर्फ, मिट्टी और जैविक पदार्थ होते हैं. इसकी जमी हुई अवस्था प्राचीन पौधों और जानवरों के अवशेषों को संरक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. हालांकि, बढ़ते हुए वैश्विक तापमान पर्माफ्रॉस्ट के लिए खतरा हैं.
क्या कहते हैं वैज्ञानिक?वैज्ञानिकों का कहना है कि भले ही अभी तक जोंबी वायरसों से मनुष्यों और जानवरों में संक्रमण का कोई प्रमाण नहीं मिला है, लेकिन भविष्य में यह खतरा बना हुआ है. इसीलिए वैज्ञानिक इन वायरसों पर गहन शोध कर रहे हैं और यह समझने की कोशिश कर रहे हैं कि वे कितने खतरनाक हैं और उन्हें रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं.