World Stroke Day 2023 understanding the symptoms will reduce the risk of stroke know importance of golden hour | World Stroke Day: लक्षणों की समझ से कम होगा स्ट्रोक का खतरा, जानिए गोल्डन आवर का महत्व

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World Stroke Day 2023: भारत में हर साल 18 लाख से अधिक लोग ब्रेन स्ट्रोक के शिकार हो रहे हैं. ध्यान न देने के कारण ठीक होने वाले लोगों में से एक चौथाई में इसके दोबारा होने की आशंका बढ़ जाती है. वर्ल्ड स्ट्रोक ऑर्गेनाइजेशन के अनुसार स्ट्रोक (ब्रेन अटैक) दुनिया में विभिन्न रोगों से होने वाली मौतों का दूसरा सबसे बड़ा कारण है.
चिंताजनक पहलू यह है कि अब युवा भी स्ट्रोक का शिकार हो रहे हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ टोक्यो हॉस्पिटल के अध्ययन के अनुसार अब तुलनात्मक रूप से 35 से 50 आयु वर्ग वाले लोगों में स्ट्रोक के मामले बढ़त पर हैं, जिसका एक प्रमुख कारण अनहेल्दी लाइफस्टाइल है.
क्या है स्ट्रोक?स्ट्रोक एक आपातकालीन मेडिकल स्थिति है, इन्हें नियंत्रित रखना जरूरी जब दिमाग की नसें (आर्टिरीज) में खून की आपूर्ति में रुकावट हो जाती है या थक्का (क्लॉट) बनने पर दिमाग में ब्लड सर्कुलेशन की प्रक्रिया में रुकावट उत्पन्न हो जाता है. इस स्थिति में दिमाग को ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और इसके सेल्स (न्यूरॉन्स) मरने लगते हैं. वहीं, दिमाग को खून पहुंचाने वाली नलिका के फट जाने के कारण भी दिमाग के आंतरिक भाग में ब्लीडिंग होने लगता है. इन दोनों स्थितियों में दिमाग काम करना बंद कर देता है. समय पर सही उपचार न मिलने पर यह स्थिति जानलेवा साबित हो सकती है. 
स्ट्रोक के प्रमुख प्रकार
इस्केमिक स्ट्रोक: अमेरिकन स्ट्रोक एसोसिएशन द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार स्ट्रोक के लगभग 80 फीसदी मामले इस्केमिक के होते हैं. दिल की ब्लड वैसेल्स में रुकावट होने या फिर थक्का जमने की स्थिति को इस्केमिक स्ट्रोक कहते हैं. इसमें दिमाग को पर्याप्त ऑक्सीजन नहीं मिल पाता और दिमाग ढंग से काम नहीं कर पाता.
मिनी स्ट्रोक या टीआईए: ट्रांजिट इस्केमिक अटैक (टीआईए) को मिनी स्ट्रोक भी कहते हैं। इसके लक्षण आमतौर पर 24 घंटे में स्वतः दूर हो जाते हैं, पर ऐसा स्ट्रोक एक तरह से खतरे की घंटी है, जो बड़े स्ट्रोक के रूप में दोबारा दस्तक दे सकता है.
हेमरेजिक स्ट्रोक: अमेरिकन स्ट्रोक एसोसिएशन के अनुसार लगभग 15% लोगों में दिमाग की ब्लड वैसेल्स फटने से ब्रेन हेमरेज होता है. इससे दिमाग के आंतरिक भाग में खून बहने लगता है.
गोल्डन आवरस्ट्रोक से पीड़ित व्यक्ति के लिए हर एक पल अनमोल है. पहले 4 से 4:30 घंटे के अंदर सही उपचार से बचने की संभावनाएं प्रबल हो जाती हैं. इस अवधि को गोल्डन आवर कहा जाता है. लक्षण दिखने पर पीड़ित को पहले ही न्यूरो सुविधाओं से संपन्न हॉस्पिटल में ले जाएं, जहां एमआरआई व सीटी स्कैन की व्यवस्था हो. इन्हीं जांच से पता चलता है कि स्ट्रोक से दिमाग का कौन-सा भाग डैमेज हुआ है और कहां पर क्लॉट है. सबसे पहले मरीज के दिमाग की ब्लड वैसेल्स में जमे क्लॉट को घुलाने वाला इंजेक्शन लगाया जाता है. बड़ी संख्या में मरीजों का इससे राहत मिल जाती है. इंजेक्शन से राहत नहीं मिलने पर थ्रॉम्बेक्टॅमी प्रोसीजर से खून के थक्के को हटाया जाता है.



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