अभिषेक जायसवाल/वाराणसी: दुर्गापूजा उत्सव के अंतिम दिन यानी दशहरा पर माता के विदाई से पहले सिंदूर खेला की रस्म निभाई जाती है. बंगाली हिन्दू महिलाएं इस रस्म को निभाती हैं. सिंदूर खेला यानी ‘सिंदूर का खेल’ या सिंदूर से खेले जाने वाली होली. बंगाल से लेकर काशी तक मनाई जाती है. दुर्गा पूजा पंडालों में भी यह रस्म निभाई जाती है. इसे सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है. इसके अलावा मान्यता ये भी है कि सिंदूर खेला से पति की आयु भी बढ़ती है.
काशी के विद्वान और ज्योतिषाचार्य पंडित संजय उपाध्याय ने बताया कि बंगाली समाज से लोग माता के विदाई से पहले वो सभी रस्मे निभाते हैं जो बेटी के विदाई के वक्त मायके में निभाया जाता है. इसी के तहत बंगाली महिलाएं देवी को सिंदूर चढ़ाती हैं. उसके बाद दही, पेड़ा और जल अर्पण करती हैं. माता को चढ़ाया गया यही सिंदूर महिलाएं खुद लगाती हैं. फिर इसी सिंदूर को महिलाएं एक दूसरे को लगाती हैं और सिंदूर की होली खेलती हैं.
दशहरा के दिन मनाई जाती है रस्मकाशी के पूजम पंडालों में यह रस्म बेहद धूम धाम से मनाया जाता है. 24 अक्टूबर को दशहरा के दिन सिंदूर खेला का रंग पूजा पंडालों में देखने को मिलेगा. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार सिंदूर खेला से देवी भक्तों की सभी मनोकामनाओं को पूर्ण करती हैं.
450 साल पुराना है इतिहासजानकारी के मुताबिक, सिंदूर खेला के इस रस्म की परंपरा 450 साल से अधिक पुरानी है. बंगाल से इसकी शुरुआत हुई थी और अब काशी समेत देश के अलग-अलग जगहों पर इसकी खासी रंगत देखने को मिलती है.
(नोट: यह खबर धार्मिक मान्यताओं और ज्योतिषशास्त्र पर आधारित है. News 18 इसके सत्यता की पुष्टि नहीं करता है.)
.Tags: Local18, Religion 18, Uttar pradesh news, Varanasi newsFIRST PUBLISHED : October 23, 2023, 13:15 IST
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