आदित्य कृष्ण/ अमेठी.भारत की आजादी के दिन 1947 से गिनती करें तो भारत स्वतंत्रता प्राप्ति की 77वीं वर्षगांठ मना रहा होगा. लेकिन 15 अगस्त 1948 से गिनती करें तो 76वें स्वतंत्रता दिवस पर आती है. ऐसे में अमेठी में भी कई वीर सपूतों ने आजादी की लड़ाई में न सिर्फ अपना योगदान दिया था, बल्कि देश आजाद कराने की क्रांति में अंग्रेजी हुकूमत को परास्त किया था. 600 से अधिक भालेसुल्तानियों ने अमेठी के मुसाफिरखाना क्षेत्र के कादूनाला जंगल में भीषण युद्ध के बाद अपनी कुर्बानियां दी.जिसका इतिहास आज भी अमेठी के वीर भाले सुल्तानी वन स्थली में दर्ज है.
देश को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करने वाले अमेठी के जिस क्षेत्र की हम बात कर रहे हैं. वह क्षेत्र अमेठी के मुसाफिरखाना तहसील क्षेत्र से करीब 5 किलोमीटर दूर लखनऊ हाईवे मार्ग पर स्थित है. इस कादू नाला वनस्थली का वर्षों पुराना इतिहास है. कहा जाता है कि जब अंग्रेजी हुकूमत के प्रमुख जर्नल डायर फैक्स की अगुवाई में फौजी तेजी से आगे बढ़ रही थी और लगातार लोगों को सताया जा रहा था. तब ऐसे में गुलामी की जंजीरों से बचाने के लिए राजा बेनी माधव सिंह की अगुवाई में सर्व समाज के लोगों ने अंग्रेजों से मोर्चा संभाल लिया. जिसके बाद यहां उसके ऊपर तोपे बरसने लगे. फिर भी वीर सैनिकों ने हार नहीं मानी और आजादी की लड़ाई में 8 मार्च 1857तकअंग्रेजों और भालें सुल्तानिया में भीषण युद्ध हुआ.
अलग-अलग स्थान पर फांसी दी गई4 बार सैनिकों ने सर्वसमाज के लोगों के साथ मिलकर अंग्रेजी हुकूमत को परास्त किया. लेकिन कुछ घुसपैठियों की वजह से वीर सैनिकों को अंग्रेजों से परास्तहोना पड़ा और अपना बलिदान देना पड़ा. अंग्रेजी हुकूमत ने शहीद सैनिक रघुवीर सिंह सहित अन्य सैनिकों का सर उसी जंगल में मौजूद एक कुएं में डाल दिया. इस युद्ध में बंदी बनाए गए अधिकांश सैनिकों को अलग-अलग स्थान पर फांसी दी गई. जिसमें जगदीशपुर के स्वतंत्रता संग्राम सेनानी भैरव प्रसाद, सैनिक रघुवीर सिंह, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी राम प्रताप सिंह, स्वतंत्रता संग्राम सेनानी गुरुप्रसाद सिंह जैसे वीरों ने अपनी कुर्बानियां दी और देश को आजाद कराने में अपना सर्वस्व निछावर कर दिया.
1857 में हुआ था भीषण युद्धउस समय के मौजूद इतिहासकारोंकी माने तो 1857 में हुए इस युद्ध में बैसवारा के राजा बेनी माधव के साथ हलियापुर के अंगद सिंह, पापा के रघुवीर सिंह, हरिदत्त सिंह, राजा माधव सिंह, हिमांचल सिंह सहित अन्य भाले सुल्तानिया का प्रमुख योगदान रहा. जिन्होंने देश को आजाद कराने के लिए हंसते-हंसते अपने प्राण न्यौछावर कर दिए.
शहीद स्मारक स्थल के पास मौजूद हैं प्राचीन कुआंदेश को आजाद कराने में अमेठी के सैनिकों ने काफी योगदान किया. सर्व समाज के लोगो ने अपने बलिदान इसी वीर शहीद स्थली पर न्यौछावर कर दिए. इसी जंगल में वह कुआं भी मौजूद है. जहां सैनिकों के कटे सिर फेंके गएथे. मुसाफिरखाना का कादू नाला जंगल आजादी की तस्वीरें बयां करता है और यहां की स्मृतियां पत्थरों की लकीरों में दर्द है.
शहीदों को किया जाता है नमनस्वतंत्रता संग्राम सेनानी परिवार के सदस्य अवधेश कुमार सिंह बताते हैं कि यह न सिर्फ शहीद स्मारक स्थल है, बल्कि पृथ्वी का प्रथम तीर्थ भी कहा जाता है1857 के युद्ध में यहां कई बार अंग्रेजी हुकूमत को परास्त किया गया. इसी क्षेत्र में वाले सुल्तानिया के साथ सर्व समाज के लोगों ने अंग्रेजों से लड़ाई लड़ी. लेकिन घुसपैठियों की वजह से उन्हें परास्त होना पड़ा और उन्होंने अपने बलिदान दिए और उन्हें स्मृति में या स्मारक स्थल आज भी उनकी स्मृतियों को संजो रहा है और उन्हें नमन कर रहा है.
.Tags: Local18, अमेठीFIRST PUBLISHED : August 14, 2023, 20:22 IST
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