विशाल झा
गाज़ियाबाद. हर वर्ष 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन को जर्मन फिजिशियंस कॉलेज सैमुअल हैनीमैन की जयंती के रूप में मनाते हैं. हैनीमैन को होम्योपैथी का संस्थापक भी कहा जाता है. ऐसे कई असाध्य रोगों का उपचार होम्योपैथी में संभव है जिसके लिए एलोपैथिक दवा लेने से मरीज घबराता है.
इस बार विश्व होम्योपैथी दिवस की थीम होम्योपैथिक पीपल्स चॉइस फॉर वैलनेस रखी गई है. होम्योपैथी के पितामह कहे जाने वाले डॉ. सैम्युअल के बारे में जानने के लिए हमने गाजियाबाद के जिला एमएमजी अस्पताल में पोस्टेड (तैनात) होम्योपैथी डॉक्टर संजीव पवार से बात की. डॉक्टर पवार ने बताया कि होम्योपैथिक दवा विश्वास पर आधारित है. हर व्यक्ति के अलग-अलग लक्षणों के हिसाब से उसे दवा दी जाती है और फिर उपचार होता है. होम्योपैथी में किसी भी बीमारी का इलाज जड़ से होता है. अब सरकार की तरफ से भी प्रत्येक अस्पताल में आयुष विंग बनाकर होम्योपैथी डॉक्टरों को तैनात किया गया है, ताकि मरीजों को भटकना ना पड़े.
72 साल की उम्र में हैनीमैन ने बनाए थे यौन संबंध
होम्योपैथी दवाओं के माध्यम से नपुसंकता और शीघ्रपतन का इलाज भी संभव है. ऐसी ही एक दवा लाइकोपोडियम है. इससे शीघ्रपतन या कमजोरी को दूर करने में मदद मिलती है. होम्योपैथी के संस्थापक कहे जाने वाले हैनीमैन ने इस दवा को साबित करने के लिए 72 वर्ष की उम्र में विवाहित होने के बाद भी दूसरी औरत से यौन संबंध बनाए थे और इससे उनको संतान भी हुआ था. इस बात की होम्योपैथी वर्ल्ड में काफी चर्चा है.
होम्योपैथी पर कई बार लोग करते हैं कम विश्वास
डॉक्टर पवार ने कहा कि ऐसे कई लोग हैं जो होम्योपैथिक दवाओं पर यकीन नहीं करते. ऐसे लोग जब महंगी एलोपैथिक दवाओं से परेशान हो जाते हैं, तब वो होम्योपैथिक से ट्रीटमेंट करवाते हैं. ऐसे में मरीजों को अपने लक्षण के हिसाब से समझने की जरूरत है कि कौन सी दवाई उन पर असर कर सकती है.
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