सृजित अवस्थी
पीलीभीत. बांसुरी को श्रीकृष्ण का प्रिय माना जाता है. इस बांसुरी का उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से सदियों पुराना नाता है. सैकड़ों वर्ष पहले सूफी संत सुभान शाह ने पीलीभीत में बांसुरी कारीगरों को बसाया था. तब से यहां यह कारोबार किया जाता है. वैसे तो कारीगरी मूल रूप से पुरुषों का काम माना जाता है. लेकिन, महिलाओं के हाथ लगे बिना इस बांसुरी के सुर अधूरे रह जाएंगे. यहां रहने वाले तमाम मुस्लिम परिवार आज भी अपने पुश्तैनी काम के रूप में बांसुरी उद्योग चला रहे हैं.
सबसे पहले लंबे बांस को बांसुरी के आकार के हिसाब से काटा जाता है. कटाई के बाद बांस की छिलाई की जाती है. फिर बांसुरी में सुरों के लिए गर्म सलाखों से छेद किया जाता है. आखिर में बांसुरी के ऊपरी सिरे पर डॉट लगा कर उसे अलग-अलग रंगों से रंगा जाता है. इसके बाद, बांस से बजाने योग्य बांसुरी बन पाती है.
बांसुरी को सुर देने के लिए उसमे तय दूरी पर लोहे की गरम सलाखों से सुराख किए जाते हैं. बांसुरी कारखानों में छिदाई का काम महिलाओं के जिम्मे होता है. बांसुरी उद्योग पर लंबे समय से काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार डॉ. अमिताभ अग्निहोत्री की मानें तो शुरुआती दौर में महिलाओं को कारीगरी से जोड़ने के लिए उन्हें यह काम सौंपा गया था. समय के साथ महिलाओं ने इस काम में महारथ हासिल कर ली. आज के समय में सुर के लिए छिदाई कारीगरी महिलाओं को ही आती है. इसलिए अब यह काम उनके जिम्मे है.
बता दें कि, बांसुरी बनाने में मुख्य रूप से जिस कच्चे माल का इस्तेमाल किया जाता है वो पीलीभीत से आता है. पीलीभीत देश में एकमात्र जिला है जो बांसुरी उत्पादन के लिए जाना जाता है.
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