रिपोर्ट- अमित सिंह
प्रयागराज. विज्ञान वरदान है या अभिशाप यह प्रश्न चिरकाल से आज भी स्थाई स्वरूप में है. इसी विज्ञान से उपजे तकनीकी युग ने बच्चों के वात्सल्य पर करारा प्रहार किया है. हम यह कह सकते हैं उन्हें बाल्यावस्था में ही रोग की ओर अग्रसर कर रहा है. छोटे बच्चों में इस मोबाइल की लत इतनी भीषण हो चुकी है कि आंख खुलते ही उन्हें पानी दान की नहीं बल्कि मोबाइल की आवश्यकता होने लगी है.
प्रयागराज स्थित फाफामऊ के मृदुल का तीन साल का बेटा श्रेयांश बिना मोबाइल के खाना नहीं खाता है. उसे हर काम के लिए मोबाइल चाहिए. परिवार के लोग उसके इस लत से बेहद परेशान हैं. खास बात यह है कि मोबाइल छीनने पर वह रोना शुरू कर देता है. प्रक्रिया इतनी बढ़ जाती है कि विवश होकर परिवार के लोगों को उसे मोबाइल देना ही पड़ता है.
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बड़ी संख्या में बच्चे हैं शिकारमोतीलाल नेहरू मंडलीय अस्पताल के वरिष्ठ मनोचिकित्सक डॉक्टर राकेश पासवान कहते हैं कि श्रेयांश की तरह बड़ी संख्या में ऐसे बच्चे हैं जो मोबाइल में वीडियो देखकर ही खाना खाते हैं. इसके लिए कोई और नहीं बल्कि परिवार के सदस्य ही जिम्मेदार हैं. यदि बच्चा ज्यादा मोबाइल देख रहा है तो वह चिड़चिड़ापन के साथ मानसिक रोगी भी हो सकता है. डॉक्टर पासवान ने मानसिक स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत राजर्षि पुरुषोत्तम दास टंडन इंटर कॉलेज हिंदी विद्यापीठ में बच्चों को मोबाइल से दूर रहने का संदेश दिया.
अभिभावकों को रहना होगा सचेतडॉ. पासवान ने कहा कि बच्चों को मोबाइल की लत छुड़ाने के लिए उनके अभिभावकों को उनके साथ समय बिताना होगा. भागदौड़ भरी जिंदगी में माता- पिता अपने बच्चों के बाद चल के प्रति गंभीर नहीं नजर आते हैं. यही कारण है कि बच्चे मोबाइल की दुनिया में खोए रहते हैं . बच्चे कई घंटे तक लगातार मोबाइल का इस्तेमाल करते हैं. यूट्यूब या गेम उन्हें मानसिक व शारीरिक परेशानी प्रदान कर रही है.
आज के दौर में मानसिक समस्या आमआज के दौर में मानसिक समस्या आम हो चुकी है. इससे बचने के लिए हमें अपने परिवार के साथ समय बिताना होगा और हर समस्या पर चर्चा करने की आवश्यकता है. उन्होंने आगे बताया कि मोबाइल का उपयोग सीमित समय के लिए करना चाहिए. प्रधानाचार्य स्वामी नाथ त्रिपाठी ने कहा कि शारीरिक स्वास्थ्य मानसिक स्वास्थ्य का पूरक होता है. यदि व्यक्ति मानसिक रूप से स्वस्थ है तो उसके शारीरिक रूप से स्वस्थ रहने की संभावना बढ़ जाती है.
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