हाइलाइट्समाघ मेला में मकर संक्रांति के मौके पर किन्नर अखाड़े ने भी संगम के तट पर पहुंचकर डुबकी लगाई. हर-हर गंगे और ओम नमः शिवाय का उद्घोष करते हुए किन्नर संत गंगा के तट पर पहुंचे. इस मौके पर किन्नर अखाड़े के संतो ने जोशीमठ में आई त्रासदी से मुक्ति के लिए प्रार्थना की. प्रयागराज. माघ मेला के दूसरे स्नान पर्व मकर संक्रांति के मौके पर किन्नर अखाड़े ने भी संगम के तट पर पहुंचकर आस्था की डुबकी लगाई. हर-हर गंगे और ओम नमः शिवाय का उद्घोष करते हुए किन्नर संत गंगा के तट पर पहुंचे और गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की त्रिवेणी के संगम में डुबकी लगाई. इस मौके पर किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी उर्फ टीना मां और वैष्णवी नंदगिरी समेत दूसरे किन्नर संतो ने जोशीमठ में आई त्रासदी से मुक्ति और वैश्विक महामारी कोरोना के खात्मे के लिए मां गंगा और यमुना से प्रार्थना की. किन्नर अखाड़े ने इसके साथ ही विश्व कल्याण की भी कामना की.
इस मौके पर किन्नर संतों ने विश्व में शांति और देश की प्रगति की भी मां गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती से कामना की. किन्नर अखाड़े की महामंडलेश्वर कौशल्या नंद गिरी उर्फ टीना मां के मुताबिक इस बार भी माघ मेले में किन्नर अखाड़े का शिविर लगा है. जहां पर प्रतिदिन यज्ञ अनुष्ठान और शत-चंडी जाप हो रहा है. किन्नर संतों ने श्रद्धालुओं से अपील की है कि वे माघ मेले में आए साधु-संतों का दर्शन कर पुण्य लाभ अर्जित करें. किन्नर अखाड़े का अस्तित्व पिछले कुछ साल में उभरकर सामने आया है. किन्नर अखाड़ा का गठन साल 2013 में किया गया. सबसे पहले 2016 के उज्जैन में हुए कुंभ मेले के दौरान पहली बार किन्नर अखाड़ा चर्चा में आया था. इसके बाद 2019 में प्रयागराज के कुंभ मेले में किन्नर अखाड़े ने जूना अखाड़े से मिलकर अपनी जोरदार मौजूदगी दर्ज कराई थी.
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जबकि देश में संतों के अखाड़ों का औपचारिक मान्यता देने वाली संस्था अखाड़ा परिषद ने किन्नर अखाड़े को औपचारिक मान्यता देने से इनकार कर दिया. अखाड़ा परिषद का साफ कहना है कि सनातन परंपरा में केवल 13 अखाड़ों को ही मान्यता है. किन्नर अखाड़े को 14वें अखाड़े की मान्यता मिलने का सवाल ही नहीं है. अखाड़ा परिषद का कहना है कि हिंदू धर्म की संन्यास परंपरा में किन्नरों को संन्यास लेने का अधिकार नहीं है. अगर किन्नरों ने किसी प्रलोभन या लाभ के लिए संन्यास की पंरपरा को अपनाने का काम किया है, तो ये किसी भी तरह से सही नहीं ठहराया जा सकता है. बहरहाल किन्नर अखाड़ा के बनने के दौरान उसके लिए जुटे लोगों को अपने ही समाज का विरोध भी झेलना पड़ा था.
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