यादें ही शेष : धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव की विरासत संभाल पाएंगे अखिलेश?

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यादें ही शेष : धरती पुत्र मुलायम सिंह यादव की विरासत संभाल पाएंगे अखिलेश?



लखनऊ. मुझे याद है, प्रयागराज तब इलाहाबाद हुआ करता था. बात साल 2007 की है. संगम के किनारे अर्धकुंभ मेला चल रहा था. नेताजी तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हुआ करते थे. 20 जनवरी 2007 को नेताजी कुंभ स्नान और संतों का आशीर्वाद लेने पहुंचे. संतों ने दिल खोलकर आशीर्वाद दिया. स्नान, दर्शन-पूजन के बाद जब पत्रकारों ने नेताजी से पूछा, तो उन्होंने हंसते हुए जवाब दिया– संतों से आशीर्वाद लेना एक कठिन काम था, लेकिन मुझे बड़ी आसानी से मिल गया.
ये नेताजी का ही व्यक्तित्व था कि जो साधु-संत 1990 में कारसेवकों पर गोली चलवाने के फैसले के बाद उन्हें अपना सबसे बड़ा दुश्मन मानने लगे थे, वही 2007 में उनपर अपने आशीष बरसा रहे थे और रामनामी चादरों से ढंक रहे थे. इतना ही नहीं संतों की सबसे बड़ी संस्था अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने उनके प्रधानमंत्री बनने तक की कामना की थी.
समर्थकों का प्यार2 अक्टूबर को जब नेताजी की तबीयत बिगड़ने की ख़बर आई तो सैकड़ों हज़ारों किलोमीटर से समर्थकों के पहुंचने का सिलसिला शुरू हो गया. क्या नौजवान, क्या बुजुर्ग, क्या दिव्यांग… हर कोई अपने नेताजी की एक कुशल ख़बर पाने के लिए मेदांता के बाहर पहुंच रहा था. सुल्तानपुर का एक दिव्यांग तो नेताजी की एक झलक पाने के लिए लकड़ी की पटरी चलाकर गुरुग्राम पहुंच गया. तो कोई मुलायम सिंह के लिए अपनी किडनी देने की पेशकश कर रहा था. 70 साल के मोहम्मद इलियास नेताजी के कपड़े सिलते थे. करीब 30 साल से मुलायम सिंह के कपड़े यही सिला करते थे. जैसे ही नेताजी की खराब सेहत की खबर मिली, इलियास उनकी एक झलक पाने के लिए गुरुग्राम दौड़े चले आए थे. इतना ही नहीं, सूबे का शायद ही कोई ऐसा शहर हो जहां नेताजी की अच्छी सेहत के लिए दुआएं ना की गई हों.

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धरती पुत्र नेताजीअपनी आंखों देखी ये कहानियां बताने का मेरा मकसद नेताजी के व्यक्तित्व के उस पहलू को सामने लाना है, जो उन्हें वाकई धरतीपुत्र बनाती है. जो उन्हें सही मायने में नेताजी कहलवाती है. नेताजी से जो एक बार मिल लेता था, वो उनकी संवाद शैली का कायल हो जाता था या नेताजी जिससे एक बार मिल लेते थे, उसका नाम उनके जेहन में हमेशा के लिए अंकित हो जाता था. कभी नेताजी के करीबी रहे अब केंद्रीय मंत्री एसपीएस बघेल बताते हैं “नेताजी अपने छोटे-छोटे से नेताओं और हर एक कार्यकर्ता को नाम से पुकारते थे. वो उन्हें निजी तौर पर जानते थे. प्रदेश के हर एक जिले, हर एक विधानसभा क्षेत्र के जातीय और दूसरे समीकरण नेताजी की जुबान पर होते थे. आप किसी भी क्षेत्र के बारे में, किसी भी नेता की बात कर लीजिए, नेताजी के पास हर जानकारी मौजूद रहती थी.” ऐसी खूबी ही नेताजी को अपने समकालीन नेताओं से अलग खड़ी करती है.
यही वजह है कि निधन के बाद जब मुलायम सिंह यादव का पार्थिव शरीर पैतृक गांव सैफई पहुंचा तो वहां भी जनसैलाब उमड़ पड़ा. पार्टी के विधायकों और नेताओं के अलावा हज़ारों-लाखों की तादाद में आम लोग उन्हें श्रद्धांजलि देने और अंतिम दर्शन के लिए उमड़ पड़े. पूरी रात अंतिम दर्शन के लिए लोगों की कतार लगी रही. घर से लेकर नुमाइश ग्राउंड तक और वहां से लेकर अंत्येष्टि स्थल तक लाखों की भीड़ ये बताने के लिए काफी है कि मुलायम यूं ही धरतीपुत्र नहीं कहलाते हैं. नेताजी के अंतिम दर्शन के लिए उमड़ा जनसैलाब और नेताजी के लिए विरोधियों की भी आत्मीयता, ये सबकुछ अखिलेश के लिए नेताजी की विरासत हैं. जिन्हें अखिलेश को ही संभालना है.
पीएम मोदी को दिया था आशीर्वादराजनीति में हमेशा अपने चरखा दांव से सबको चौंकाने वाले मुलायम सिंह ना सिर्फ पार्टी के अंदर सर्वमान्य थे बल्कि विरोधियों के दिलों में भी उन्होंने अपनी अलग जगह बनाई हुई थी. जब उनके निधन की ख़बर आई तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात में चुनावी दौरे पर थे, लेकिन उन्होंने अपनी रैली की शुरुआत ही मुलायम सिंह यादव को याद कर की. उन्होंने नेताजी के साथ अपने रिश्ते को याद करते हुए कहा “बीजेपी ने जब 2014 चुनाव के लिए मुझे प्रधानमंत्री पद का आशीर्वाद दिया तब मैंने, विपक्ष में जो लोग थे जिनसे मेरा परिचय था, वो वरिष्ठ राजनेता थे, उनसे आशीर्वाद लिया. मुझे याद है, उस दिन मुलायम सिंह जी का वो आशीर्वाद, कुछ सलाह के वो शब्द आज भी मेरी अमानत हैं.”
सही को सही और गलत को गलत कहने की हिम्मतसही को सही और गलत को गलत कहना, वो भी आपके सामने, ये कहने की हिम्मत मुलायम में ही थी. फरवरी 2019 में 16वीं लोकसभा का अंतिम सत्र था. मुलायम सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ना सिर्फ खुलकर तारीफ की बल्कि उन्हें फिर जीतकर दोबारा प्रधानमंत्री बनने की बधाई भी दी थी.
किसी से मनभेद नहींमुलायम विरोधियों से वैचारिक मतभेद तो रखते थे लेकिन उनका कभी अपने किसी विरोधी से मनभेद नहीं रहा. किसी भी राजनेता के लिए मतभेद और मनभेद में अंतर रख पाना सबसे बड़ी पूंजी होती है. और मुलायम ने ताउम्र अपनी ये पूंजी थाती की तरह संभाल कर रखी थी. अब भले ही नेताजी यानि मुलायम सिंह यादव नहीं हैं, लेकिन उनका व्यक्तित्व और विरासत दोनों वर्षों तक मौजूद रहेंगे. स्वाभाविक तौर पर सियासी उत्तराधिकारी होने के नाते ये विरासत अखिलेश यादव के कंधों पर आएगी और नेताजी के लाखों-करोड़ों चाहने वाले उसी व्यक्तित्व की अपेक्षा अखिलेश से भी करेंगे. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि क्या नेताजी के इस व्यक्तित्व को संभाल पाएंगे अखिलेश, क्या इस विरासत को साध पाएंगे अखिलेश?
अखिलेश के लिए चुनौतीअब समाजवादी पार्टी के प्रमुख के तौर पर अखिलेश यादव की तुलना मुलायम सिंह यादव से होगी. लोग, कार्यकर्ता, समर्थक और नेता अखिलेश में भी नेताजी वाली सरलता, सुलभता और उपलब्धता की छाप ढूंढेंगे. कार्यकर्ता और स्थानीय नेता बातचीत में अखिलेश से अपने नाम का संबोधन पाना चाहेंगे. ऐसे में अखिलेश को भी अपने समर्थकों, कार्यकर्ताओं और नेताओं के लिए सरल, सुलभ और सफल होना होगा.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|Tags: Mulayam Singh Yadav, Uttar pradesh newsFIRST PUBLISHED : October 11, 2022, 19:34 IST



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