रियल वर्ल्ड में कोरोना वायरस के कहर से हर कोई वाकिफ है, लेकिन वर्चुअल वर्ल्ड यानी सोशल मीडिया पर फैले ‘FOMO वायरस’ से लोग अनजाने में संक्रमित होते जा रहे हैं. दरअसल, दुनिया में हर किसी को लगता है कि सामने वाले व्यक्ति की जिंदगी उससे बेहतर है और उसे वो सबकुछ नहीं मिल पा रहा है. जो उसके आसपास मौजूद लोगों को मिल रहा है. इसी को FOMO यानी ‘फियर ऑफ मिसिंग आउट’ कहते हैं. लेकिन FOMO से लड़ने के लिए हमारे पास JOLO का हथियार भी मौजूद है. लेकिन दिक्कत यह है कि, लोग FOMO और JOLO के बारे में जानते ही नहीं है. इस कारण समय पर इसका इलाज नहीं कर पाते हैं.
क्या है सोशल मीडिया का FOMO? – What is FOMOएक्सपर्ट्स के मुताबिक, सोशल मीडिया ने हमें दूसरों की जिंदगी को नजदीक से देखने का मौका प्रदान किया है और दिक्कत यहीं से शुरू हुई. लोग सोशल मीडिया पर लेटेस्ट इवेंट, अचीवमेंट, हैप्पीनेस आदि से जुड़ी जानकारी पोस्ट करते हैं. लेकिन FOMO के कारण ये चीजें किसी दूसरे व्यक्ति के लिए उदासी व तनाव का कारण बन सकती हैं. Fear OF Missing Out (FOMO) सोशल मीडिया बिहेवियर में अक्सर देखा जाता है. लोगों को लगता है कि हम कहीं सोशल मीडिया पर होने वाले किसी इवेंट को मिस न कर जाएं और अपने पियर ग्रुप (साथियों का समूह) में पीछे रह जाएं. FOMO एक तरह का डर है, जो घबराहट और खुद के बारे में कई तरह की शंकाओं को जन्म देता है. आपको बता दें कि FOMO शब्द 1996 में दुनिया के सामने आया. जब मार्केटिंग स्ट्रेटेजिस्ट Dr. Dan Herman ने अपने रिसर्च पेपर में इसका पहली बार जिक्र किया था.
FOMO की आदत एक बीमारी बन रही है. ऐसी मानसिक बीमारी, जो लोगों खासकर युवाओं में नेगेटिविटी को जन्म दे रही है. यूथ इस चक्कर में सोशल मीडिया पर जरूरत से ज्यादा वक्त बिता रहे हैं, उलूल-जुलूल हरकतें कर रहे हैं, नाखुश रह रहे हैं और कई बार तो इस नेगेटिविटी में खुद के लिए घातक कदम भी उठा रहे हैं. डॉ. विकास खन्ना का कहना है कि आमतौर पर FOMO से ग्रसित वही व्यक्ति होता है, जो सोशल एक्सट्रोवर्ट होता है और जो पर्याप्त आत्म-चिंतन नहीं करता है. साथ ही उन पीड़ितों को अपने हैबिट पैटर्न के बारे में जागरुकता नहीं होती है और उनका नैचर हमेशा दूसरों को ये साबित करना होता है कि वो जीवन का आनंद उठा रहे हैं. मनोवैज्ञानिक FOMO से निपटने के लिए JOLO की सलाह देते हैं.
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FOMO से उबरने में कैसे मदद करता है JOLO?FOMO से उबरने के लिए एक्सपर्ट्स ने JOLO को अपनाने का सुझाव दिया है. साइकोलॉजिस्ट डॉ. विकास खन्ना ने बताया कि सकारात्मकता को बनाए रखने और जिंदगी को बेहतर तरीके से जीने में JOLO मदद कर सकता है. JOLO का मतलब जॉय ऑफ लेट इट गो (Joy Of Let Go) है. इसका मतलब है कि सोशल मीडिया पर चाहे आसमान भी टूट पड़े, लेकिन आप बेफिक्र रहें, खुद में मुतमइन रहें और खुश रहें. इससे आपको पॉजिटिव रहने में मदद मिलेगी. JOLO को फॉलो करके आप इस बात को स्वीकार करते हैं कि हर कोई परफेक्ट नहीं होता और चीजें अपने समय के हिसाब से घटित होती हैं या मिलती हैं. डॉ. खन्ना कहते हैं कि, हमें यह समझना चाहिए की लाइफ इवेंट मल्टी-फैक्टरल होते हैं, जो कि किसी के कंट्रोल में नहीं होते. हमेशा आनंद और खुशी में मिलते रहने मुमकिन नहीं है. इसलिए हमेशा वर्तमान के साथ लड़ते रहने की जगह ‘गो विद फ्लो’ (बहाव के साथ चलते जाना) का मंत्र अपनाना चाहिए.
FOMO के कारण हो सकती हैं ये समस्याएं?मेंटल हेल्थ एक्सपर्ट डॉ. विकास खन्ना का कहना है कि सोशल मीडिया पर दूसरे लोगों की जिंदगी से हम इतना ज्यादा जुड़ चुके हैं कि अब उससे प्रभावित होने लगे हैं. दूसरों के जीवन की उपलब्धियां, खुशी या जिंदगी के पल हमारी उदासी व तनाव का कारण बनने लगी हैं. इसी को FOMO कहा जाता है, जिसके कारण निम्नलिखित समस्याओं से हमें सामना करना पड़ सकता है. साथ ही FOMO के कारण एंटी-डिप्रेसेंट दवाओं के इस्तेमाल में भी बढ़ोतरी देखी जा रही है.
अत्यधिक चिंता
आत्म-सम्मान में कमी
अकेलापन
खुद को कमतर समझने का एहसास
नकारात्मकता
अवसाद
मूड स्विंग्स आदि.
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FOMO से बचने के लिए क्या करें?एक्सपर्ट कहते हैं कि FOMO यानी फियर ऑफ मिसिंग आउट से बचने के लिए आप निम्नलिखित टिप्स को फॉलो कर सकते हैं. जैसे-
FOMO से उबरने के लिए सबसे पहले आपको यह स्वीकार करना होगा कि आप इस मनोवैज्ञानिक स्थिति से गुजर रहे हैं और आपको दूसरों की जिंदगी, उपलब्धि आदि से बहुत ज्यादा फर्क पड़ता है.
अपने नजरिये में बदलाव करें. आपके पास जो नहीं है, उसके बदले ये देखने की कोशिश करें कि आपके पास क्या है.
वर्तमान में जीना सीखें. इससे आप खुशी और आनंद को महसूस कर पाएंगे. भूतकाल का भारीपन और भविष्य की चिंता आपकी उदासी का कारण बन सकती है.
सोशल मीडिया से खुद को दूर करने की कोशिश करें. मुमकिन हो, तो सोशल मीडिया डिटॉक्स जरूर लें. इसके अंतर्गत आप एक निश्चित समय के लिए किसी भी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल नहीं करते हैं.
आप अपनी भावनाओं को एक डायरी में लिखने की कोशिश करें और देखें कि आपको क्या चीज प्रभावित कर रही है. उदासी का कारण पहचान करने के बाद उससे दूर रहने का प्लान बनाएं.
जरूरत पड़ने पर मनोवैज्ञानिक या परिवार-दोस्तों की मदद लें. हर चीज आप खुद नहीं कंट्रोल कर सकते हैं. ऐसी भावनात्मक और मानसिक परिस्थिति में यही आपके सपोर्ट सिस्टम बनते हैं.
यहां दी गई जानकारी किसी भी चिकित्सीय सलाह का विकल्प नहीं है. यह सिर्फ शिक्षित करने के उद्देश्य से दी जा रही है.