स्मृति दिवस: अब भी गहरे हैं भारत-पाक विभाजन के घाव, छलका गोरखपुर के पीड़ितों का दर्द

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स्मृति दिवस: अब भी गहरे हैं भारत-पाक विभाजन के घाव, छलका गोरखपुर के पीड़ितों का दर्द



हाइलाइट्स14 अगस्त को विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस का आयोजन.देश विभाजन के वक्त पाकिस्तान से गोरखपुर आए लोगों को गोरक्षपीठ से संरक्षण मिला. गोरखपुर. देश में जब आजादी की लड़ाई लड़ी जा रही थी. उस समय कुछ ऐसे लोग भी थे जो देश को दो टुकड़ों में बांटने की कोशिश कर रहे थे और इसमें वे सफल भी हो गए. इस बंटवारे ने देश को बहुत दर्द दिया. दोनों तरफ के लाखों लोग बेघर हो गए. हजारों लोग मार दिए गए. 1947 में देश के विभाजन के बाद पाकिस्तान से भारत आए लोगों की एक अच्छी खासी आबादी गोरखपुर में भी बसती है. ये लोग सिंधी और पंजाबी समाज के हैं. पाकिस्तान से आए तो बिलुकल खाली हाथ थे लेकिन आज न केवल खुद व परिवार को मजबूती से स्थापित किए हुए हैं बल्कि समाज व देश की तरक्की में भी योगदान दे रहे हैं.
गोरखपुर महानगर के एमजी इंटर कॉलेज गली निवासी 83 वर्षीय किशनचंद ने भानी बताते हैं की देश विभाजन के समय पाकिस्तान के सिंध प्रांत के सक्खर जिले से उनका पूरा परिवार किसी तरह जान बचाकर आया था. वहां हिंदू, सिंधी और पंजाबी लोगों के लिए चारों तरफ हाहाकार वाली स्थिति थी. उनके दादा जी दुलाना मल को कराची बंदरगाह पर लूट लिया गया था. दादीजी के हाथ के कंगन और कान की बालियां तक नोच ली गई थीं. रक्त से सने हाथ व कान लेकर वह यहां पहुंची थीं. मकान, कारोबार, खेतीबाड़ी सबकुछ वहीं छूट गया. गोरखपुर आने के बाद परिवार के लोगों ने संघर्ष से खुद को स्थापित किया और आगे बढ़ाया. विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस के आयोजन पर कहते हैं कि सरकार बंटवारे का हमारा दर्द साझा कर रही है.
परिवार के 250 लोगों की हत्याबॉबिना रोड निवासी सरदार बलवीर सिंह देश विभाजन के वक्त आठ साल के थे. उनका परिवार रावलपिंडी में रहता था. पाकिस्तान में नफरत की आग इतनी भयावह थी कि बलवीर सिंह के पिता सरदार भूपेंद्र सिंह समेत खानदान के करीब 250 लोगों की हत्या कर दी गई. बचे हुए लोगों को लेकर उनके दादा जी किसी तरह बचाकर हिंदुस्तान ले आए. परिवार देवबंद, कानपुर होते हुए गोरखपुर पहुंचा. रावलपिंडी में सरदार जी की 26 गांवों में जमींदारी थी. लेकिन विभाजन के बाद की दशा को याद कर बलवीर सिंह की आंखें छलक उठती हैं.
वे बताते हैं कि रावलपिंडी से आने के बाद एक दिन कानपुर में पड़ोसी के बर्तन में खाना बना था. कुछ देर बाद पड़ोसी बर्तन मांगने आ गए. इसके बाद उनकी मां ने मजबूरी में बना खाना फर्श पर ही परोस दिया और पेट भरने के लिए हमें वही खाना पड़ा. खाली हाथ हो जाने के बाद भी परिवार के लोगों ने हार नहीं मानी और मेहनत और ईमानदारी से बढ़ते गए.
गोरक्षपीठ के महंत ने दिया था साथदेश विभाजन के वक्त पाकिस्तान से गोरखपुर आए लोगों का कहना है कि यहां उन्हें गोरक्षपीठ से संरक्षण मिला. तत्कालीन पीठाधीश्वर ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को स्थायी रूप से बसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. उनके बाद ब्रह्मलीन महंत अवेद्यनाथ और वर्तमान पीठाधीश्वर योगी आदित्यनाथ हर समय अभिभावक जैसा ख्याल रखते हैं. शरणार्थी के रूप में आए किशन चंद नेभानी और सरदार बलवीर सिंह बताते हैं कि ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ ने शरणार्थियों की जो मदद की, उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता.
14 अगस्त को समृति दिवसबता दें 1947 में देश विभाजन पर पाकिस्तान में यातनापूर्ण जिंदगी की बजाय हिंदुस्तान में संघर्षप्रद किंतु सम्मानजनक जीवन की चाह लिए आए लोगों के समाजिक पराक्रम को पहचान दिलाने के लिए केंद्र सरकार 14 अगस्त को वृहद स्तर पर विभाजन विभिषिका स्मृति दिवस का आयोजन कर रही है. प्रदेश की योगी सरकार ने केंद्र की मंशा के अनुरूप सभी जिलों में आयोजन की विस्तृत कार्ययोजना भेजी है. विभाजन का घाव सहने वालों और उनके संस्मरणों के जरिए इसकी त्रासदी महसूस करने वाले उनके परिजनों का मानना है कि स्मृति दिवस का यह आयोजन 75 साल पुराने घाव पर मरहम जैसा है.

पहली बार किसी सरकार ने हमारे दर्द की दास्तां को खुद महसूस किया है और उसे जन-जन तक प्रेरक रूप में पहुंचाने की पहल की है.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: CM Yogi Aditya Nath, Gorakhpur news, UP newsFIRST PUBLISHED : August 13, 2022, 18:12 IST



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