नागपंचमी के दिन वाराणसी का गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा और दिनों से अलग ज्यादा गुलजार था. धूल-मिट्टी से सनी महिलाएं पहलवानी का जौहर दिखा रही थीं. कुछ साल पहले तक ऐसा दृश्य देखना संभव नहीं था. क्योंकि दंगल, जिसे अब भी अधिकतर जगहों पर पुरुष-प्रधान खेल माना जाता है. खासतौर पर अखाड़े की कुश्ती को. वाराणसी में भी वर्षों से ऐसी ही प्रथा चली आ रही थी. लेकिन साल 2017 में यह प्रथा टूटी. पहलवानी में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने की नई सोच को सच कर दिखाया भदैनी स्थित गोस्वामी तुलसीदास अखाड़ा ने. इसके महंत प्रो. विश्वम्भरनाथ मिश्र ने. कुछ लोग मानते हैं कि इस प्रथा के टूटने का कारण धर्म और संस्कृति में ‘आईआईटी का तड़का’ लगना है. महंत विश्वंभरनाथ इसे महिला-पुरुष की बराबरी से जोड़कर देखते हैं.
आपने सलमान खान की फिल्म ‘सुल्तान’ का वो गाना तो सुना ही होगा, ‘खून में तेरे मिट्टी, मिट्टी में तेरा खून, ऊपर अल्लाह नीचे धरती, बीच में तेरा जुनून..’. तो गोस्वामी तुलसीदास अखाड़े में नागपंचमी के दिन ऐसा ही जुनून दिख रहा था महिला पहलवानों के चेहरे पर. मिट्टी से सनी महिला पहलवान अपने दांव से सामने वाले को चित करती दिखीं. उनके कोच उनकी हौसला अफजाई करते दिखे तो खेल के बीच देसी-विदेशी दर्शकों का हुजूम इस मौके को चार चांद लगा रहा था.
गोस्वामी तुलसीदास ने बनवाया अखाड़ाइस अखाड़े को लेकर तमाम किस्से हैं. कहा जाता है कि जब गोस्वामी तुलसीदास घाट पर बैठकर रामचरित मानस की रचना कर रहे थे, तभी उन्होंने ये अखाड़ा बनवाया था. दरअसल, वे जब रचना करते थे तो कुछ दबंग और शरारती तत्व उनका सामान लेकर भाग जाते थे. काफी समझाने और मिन्नत के बाद जब वे नहीं माने तो तुलसीदास जी ने वहां अखाड़ा बनवा दिया. पहलवान कुश्ती करते थे. तुलसीदास जी भी इस अखाड़े में रियाज मारते (कुश्ती लड़ना) थे. इसका असर ये हुआ कि पहलवानों के डर से दबंग और शरारती तत्वों का वहां आना बंद हो गया और तुलसीदास निर्विघ्न अपने काम में लग गए.
इस अखाड़े के बारे में महंत विश्वंभर नाथ मिश्र, जो बीएचयू आईआईटी में प्रोफेसर भी हैं, बताते हैं कि हनुमान जी बल, बुद्धि और विद्या के देवता हैं. तुलसीदास जी ने उन्हें अपना गुरु माना है. तुलसीदास जी का मानना था कि उपासना और सेवा तभी बेहतर हो सकती है जब इंसान स्वस्थ रहे. स्वस्थ रहने के लिए भोजन के साथ-साथ रियाज की भी जरूरत होती है. इसीलिए गोस्वामी जी ने इस अखाड़े की नींव रखी. इसके बाद से यहां की परंपरा बन गई. लोग आते हैं और रियाज करते हैं.
महंत विश्वंभर नाथ मिश्र ने बताया, वर्षों से यहां अखाड़े में पुरुष पहलवान ही रियाज मारते थे. महिलाओं का प्रवेश तक वर्जित था. कुछ वर्ष पहले चंद लड़कियों ने अखाड़े में प्रैक्टिस करना चाहा तो लोगों ने आपत्ति जताई. उन्हें इस बात की जानकारी हुई तो उन्होंने कहा कि इस अखाड़े की नींव ही स्वास्थ्य और सुरक्षा के लिए पड़ी है. यह लड़कियों के लिए भी ये जरूरी है. फिर लड़कियां प्रैक्टिस क्यों नहीं कर सकती हैं. इसके बाद ही मिश्र ने यहां लड़कियों को प्रैक्टिस की अनुमति दे दी. तब से अखाड़े में 12 से 15 लड़कियां रियाज मारने और कुश्ती लड़ने आने लगीं.
नागपंचमी के अवसर पर यहां कुश्ती की प्रथा है. पहलवानों की कुश्ती होती है. साल 2017 में हमने यहां पुरुषों के साथ-साथ महिलाओं की कुश्ती प्रतियोगिता भी कराई. यह नई शुरुआत थी. अब लड़कियों को भी प्रोत्साहन मिलने लगा है. यहां प्रैक्टिस करने वाली कई लड़कियां स्टेट और नेशनल लेवल पर अच्छा प्रदर्शन कर रही हैं.
कुश्ती लड़ने आई सृष्टि कहती हैं, मैं पिछले 5 साल से प्रैक्टिस कर रही हूं. पहले ताइक्वांडो खेलती थी. अब रेसलिंग करती हूं. सुबह अखाड़े में प्रैक्टिस करती हूं और फिर शाम को बीएचयू में. स्टेट लेवल पर खेल चुकी हूं. सपना देश के लिए खेलने का है. अपने दिनचर्या के बारे में वह कहती हैं, पहलवानों की दिनचर्या फिक्स होती है. हमें सुबह से रात तक एक शिड्यूल में अभ्यास के साथ-साथ डाइट लेना होता है. इसके साथ ही आराम भी. अच्छा लगता है कि अब बनारस में भी महिला पहलवानों को इतना प्यार और सम्मान मिलता है.
पहलवान अंजली काशी विद्यापीठ से बीए कर रही हैं. वह क्लास-6 से ही प्रैक्टिस करती हैं. उनके पिता भी पहलवान रह चुके हैं. वह कहती हैं, समय बदल गया है. अब कुश्ती सिर्फ कुश्ती है. महिला और पुरुष सब बराबर हैं. हम वैसे ही प्रैक्टिस करते हैं जैसे पुरुष. वही दांव सीखते और आजमाते हैं जो पुरुष. इसमें अब अंतर नहीं रह गया है.
अखाड़े की खासियतअखाड़े के कुछ दांव को दुनियाभर में ख्याति मिली है. जैसे दावा किया जाता है कि ‘धोबिया पाट’ दांव इसी अखाड़े की खोज है. यहां के पहलवान महंत स्वामीनाथन ने इसे इजाद किया था. उन्होंने इस दांव से देश के प्रमुख पहलवान रहे राममूर्ति पहलवान को एक ही बार में चारों खाने चित कर दिया था. इसके साथ ही ढॉक, चौमुखा काला जंग, नेवाज बंद, हलरबून, सखी, मोतीचूर, मच्छी गोता और साद जैसे दांव हैं जिसे दुनिया ने अपनाया और आजमाया. घाट किनारे होने की वजह से यहां के पहलवान अखाड़े में रियाज मारते हैं और मिट्टी से सने हुए ही गंगा में डुबकी लगा लेते हैं. तैरते हैं तो रियाज में सोने पर सुहागा हो जाता है. यहां अखाड़े की तरफ से उन्हें चना-गूड़ खाने को मिलता है जो उनके लिए अच्छी डाइट या नाश्ता भी है.
नागपंचमी के दिन विशेष आयोजन की खास बात है कि महिलाओं की कुश्ती देखने के लिए आस-पास के जिलों से लोग पहुंचते हैं. पूरा अखाड़ा भरा रहता है. सड़क से लोग कुश्ती देखते हैं. यहां तक कि विदेशी पर्यटक भी कुश्ती देखने पहुंचते हैं. मिट्टी से सने पहलवानों को देखकर विदेश से आए सैलानी आश्चर्यचकित हो जाते हैं.
नीदरलैंड से आई कैथलीन कहती हैं, उन्हें ताज्जुब हुआ ये देखकर. वह बनारस को संगीत, धर्म, ज्ञान, योग, आध्यात्म और संस्कृति के नजरिए से देखती, पढ़ती और समझती रही हैं. पहली बार उसे पहलवानों की नजर से भी देख रही हूं. मैं कह सकती हूं, बनारस को यही सब चीजें अनमोल बनाती हैं.ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी | आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी |Tags: Indian Wrestler, News18 Hindi Originals, Wrestler, WrestlingFIRST PUBLISHED : August 02, 2022, 15:18 IST
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