मेरठ में डॉक्टरों ने तीन युवाओं का किया सेक्स चेंज, दो बने लड़की तो एक लड़का, जानें पूरा मामला

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मेरठ में डॉक्टरों ने तीन युवाओं का किया सेक्स चेंज, दो बने लड़की तो एक लड़का, जानें पूरा मामला



मेरठ. मेरठ के लाला लाजपतराय मेडिकल कॉलेज के सुपरस्पेशलिटी ब्लॉक स्थिति प्लास्टिक सर्जरी विभाग ने सफलता पूर्वक लिंग पुनर्निर्धारण सर्जरी (Gender Reassignment Surgery) की है. इस तरह की सर्जरी पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहली बार मेडिकल कॉलेज में हुई है. इस दौरान डॉक्टरों की टीम ने एक सफल लिंग ट्रांसप्लांट करके दो मरीजों को लड़की बनाया है. जबकि एक को लड़का. लिंग पुनर्निर्धारण सर्जरी करने वाले चिकित्सकों ने बताया एक लड़की को ऑपरेशन से लिंग प्रत्यारोपण करते हुए लड़का बना दिया गया. डॉक्टरों ने बताया कि लड़की में एक्सवई क्रोमोसोम थे, जिस वजह से उसमें पुरुषों के लक्षण थे. उसकी सहमति से लिंग प्रत्यारोपण कर दिया गया. यह पश्चिम उप्र का पहला ऑपरेशन है. डॉक्टर्स का कहना है कि मरीज पूरी तरह स्वस्थ है.
मेडिकल कॉलेज के मीडिया प्रभारी डॉक्टर वीडी पाण्डेय ने बताया कि प्लास्टिक सर्जन डॉ. भानु प्रताप सिंह और अन्य डॉक्टर्स की टीम ने ऑपरेशन किया है. बताया गया कि हार्मोंनल असंतुलन की वजह से कई लड़कियों में लड़कों के लक्षण उभर आते हैं. तकरीबन 8 घंटे के ऑपरेशन के बाद पतली नसों को जोड़कर लिंग रोपण कर दिया गया. प्राचार्य डॉ.आरसी गुप्ता ने बताया कि विशेषज्ञ चिकित्सक कई बड़े ऑपरेशन कर चुके हैं. सुपरस्पेशियलिटी ब्लाक के चिकित्सकों की वजह से अब मरीजों को एम्स और पीजीआई नहीं जाना पड़ेगा.
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डॉक्टरों ने बताया कि मरीज का क्रोमोसोम एक्सवाई था, जबकि लड़कियों में यह एक्स एक्स होता है. कई बार पुरुषों और महिलाओं में हार्मोस का असंतुलन होने से विपरीत लिंग वाले लक्षण उभरते हैं. इस सफलता से डॉक्टर्स की टीम बेहद उत्साहित हैं. उनके परिवार से मिलकर दोनों को लड़की बनाने की सहमति ली गई. उन्हें महिलाओं वाले हार्मोन्स एस्ट्रोजन की खुराक दी गई, जिस पर लड़कियों वाले लक्षण बढ़ने लगे. बाद में बड़ी आंत का थोड़ा भाग लेकर उसमें रक्त आपूर्ति जारी रखते हुए इसे नीचे लाया गया. प्लास्टिक सर्जरी के जरिए निजी अंग बनाकर दोनों मरीजों में प्रत्यारोपित कर दिया गया. आंत का भाग होने की वजह से इस अंग में नमी बनी रही. दोनों के क्रोमोसोम भले ही पुरुषों वाले मिले, लेकिन इनमें लड़कियों के लक्षण ज्यादा थे. ऐसे मरीजों में संतान पैदा करने की क्षमता नहीं होती.
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