एंटीफंगल प्रतिरोध जल्द ही एक विश्व स्तरीय स्वास्थ्य समस्या बन सकती है. यह तब होता है जब फंगी एंटीफंगल दवाओं से जीवित रहने की क्षमता विकसित कर लेता है, जिसका उपयोग फंगल इंफेक्शन के इलाज के लिए किया जाता है.
‘द लांसेट’ में शुक्रवार को प्रकाशित एक स्टडी ने एंटी माइक्रोबियल रेजिस्टेंस (एएमआर) के खिलाफ लड़ाई में फंगल पैथोजन पर भी ध्यान देने की आवश्यकता की अपील की है. यह स्टडी ब्रिटेन के मैनचेस्टर यूनिवर्सिटी, एम्सटर्डम और नीदरलैंड के वेस्टरडाइक इंस्टीट्यूट के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया है. इसके अनुसार, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा पहचाने गए अधिकांश फंगल पैथोजन या तो पहले से ही प्रतिरोधी हैं या तेजी से एंटीफंगल दवाओं के प्रति रेजिस्टेंस विकसित कर रहे हैं.
हर साल जाती है लाखों जान
स्टडी के अनुसार, इन फंगल बैक्टीरिया के कारण हर साल लगभग 38 लाख लोगों की मौत होती है. यह रिपोर्ट संयुक्त राष्ट्र की इस महीने के अंत में होने वाली एएमआर पर बैठक से पहले आई है, जिसमें एएमआर पर कंट्रोल के लिए फंगल पैथोजन में विकसित रेजिस्टेंस को शामिल करने की अपील की गई है.
ये जानलेवा फंगस बूजुर्गों को बनाती है शिकार
स्टडी में एस्परगिलस, कैंडिडा, नाकासीओमाइसेस ग्लैब्रेटस और ट्राइकोफाइटन इंडोटिनी जैसे प्रमुख फंगीसाइड रेजिस्टेंट इंफेक्शन का जिक्र किया गया है. यह विशेष रूप से बुजुर्गों और कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए गंभीर स्वास्थ्य खतरा पैदा करते हैं.
एक्सपर्ट की राय
मैनचेस्टर विश्वविद्यालय के डॉ. नॉर्मन वान रिज्न ने कहा, पिछले दशकों में आक्रामक फंगल रोगों ने कई ड्रग रेजिस्टेंस समस्याओं को जन्म दिया है. फंगल और मानव कोशिकाओं के बीच अत्यधिक समानता के कारण ऐसे उपचार खोज पाना चुनौतीपूर्ण होता है, जो केवल फंगल कोशिकाओं को टारगेट करें और मानव कोशिकाओं को नुकसान न पहुंचाएं.
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फंगल इंफेक्शन के लक्षण
फंगल इंफेक्शन होने पर आमतौर पर प्रभावित क्षेत्र में खुजली, दर्द, लालिमा या दाने होना, नाखून का रंग उड़ना, मोटे होना या टूटना, भोजन करते समय दर्द होना, स्वाद का न आना या मुंह या गले में सफेद धब्बे होना, त्वचा के नीचे दर्द रहित गांठ जैसे लक्षण नजर आते हैं.